बिभूति भूषण बंद्योपाध्याय अनुवाद: जयदीप शेखर
साहित्य विमर्श प्रकाशन
₹189 (-10%)
In stock
Veeraan Tapu Ka Khazana | वीरान टापू का खज़ाना – 1946 में प्रकाशित ‘हीरे माणिक जले’ का हिन्दी अनुवाद है।
मुस्तफी वंश में काम करना बेइज्जती की बात मानी जाती थी। वह जमींदार जो होते थे। पर सुशील काम करना चाहता था। जब गाँव में उसे काम नहीं मिला, तो वो डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए कोलकाता आ गया।
और यहाँ उसकी मुलाकात हुई एक खलासी जमातुल्ला से जिसने उसे एक मणि और एक टापू की ऐसी दास्तान सुनाई। जमातुल्ला की मानें तो उस टापू में ऐसा खजाना था जो किसी को भी अमीर… बहुत अमीर बना सकता था। पर वहाँ जाना इतना आसान न था।
यह सुन सुशील अपने ममेरे भाई सनत और जमातुल्ला के साथ उस खजाने की खोज पर जाने को लालायित हो गया। पर उस खजाने तक पहुँचना आसान न था। उन्हें न केवल खतरनाक समुद्री यात्रा करनी थी, बल्कि ऐसे जलदस्युओं से भी खुद को बचाना था, जो खजाने की भनक पाकर उन्हें मार डालने में जरा भी नहीं हिचकिचाते।
आखिर कैसी रही सुशील, सनत और जमातुल्ला की यात्रा?
इस यात्रा पर उनके सामने क्या क्या मुसीबतें आईं?
क्या उन्हें मिल पाया वीरान टापू का खजाना?
खज़ाने की तलाश की यह कहानी रोमांचक होने के साथ-साथ मानवीय स्वभाव और सौहार्द की अनूठी दास्तान है।
Reviews
There are no reviews yet