इस उपन्यास में तीन शहरों का सफ़र है, जिनसे गुज़रते हुए कथावाचक ज़िंदगी के तमाम रंगों से रूबरू होता है। वह पहले शहर में पहुँचता है अपने लकवाग्रस्त भाई के इलाज के लिए, जहाँ उसे कोई हल नहीं मिलता। फिर दूसरे शहर में भी भटकता हुआ पहुँचता है लेकिन वहाँ भी कोई फ़ायदा नहीं मिलता। तब वह तीसरे शहर दिल्ली पहुँचता है, जहाँ कई मुख्य घटनाएँ घटती हैं। वह सफ़र पर था लेकिन उसे सब कुछ ठहरा लगता था। तीसरे शहर में वह एक पुनर्वास केंद्र में रहता है जहाँ वह कहानी मुख्य पात्र की पीड़ा का गवाह तो बनता है, साथ ही उस जैसे तमाम लोगों की तकलीफ़ों का साक्षी भी बनता है। वह इस शहर के भीतर एक अलग ही अँधेरी, ठहरी हुई दुनिया देख रहा था लेकिन जब वह ज़िंदगी के लिए उनकी जद्दोजहद को देखता है तो सारे अँधेरों को भूल जाता है। वहाँ उसे कई कहानियाँ मिलीं जिसमें कुछ उदासियों की थीं, कुछ मंज़िलों को पाने की थीं, तो कुछ अँधेरे में जुगनू की तरह चमकती हुई प्रेम कहानियाँ थीं। तीसरे शहर में उसे अपनी प्रेम यात्रा की मंज़िल भी मिलती है, किसी अजूबे की तरह, पर तब तक वह बहुत कुछ खो चुका होता है।
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