Page no 294 to 338 matter was repeat as it was already read in various lekhkias.
(0)(0)
Sorry, no reviews match your current selections
Add a review
Pani Kera Budbuda
Rating*
0/5
* Rating is required
Your review
* Review is required
Name
* Name is required
Email
* Email is required
* Please confirm that you are not a robot
Pani Kera Budbuda | पानी केरा बुदबुदा
टॉप मिस्ट्री राइटर
सुरेन्द्र मोहन पाठक
की आत्मकथा का चौथा खंड
उपन्यास से ज्यादा रोचक।
हर वाकया जैसे आपकी अपनी आपबीती।
लुगदी पॉकेट बुक्स के विलुप्त व्यवसाय
के कई स्याह सफेद वाकये।
लेखक के उस दौर के पाठकों से
आपका सीधा डायलॉग।
ये खंड पढ़ते वक्त लेखक कभी आप को
सुनील लगेगा, कभी सुधीर लगेगा
तो कभी विमल लगेगा।
एक अद्भुत अहसास।
आदि से अंत तक रोचक आत्मकथा खंड–4
साहित्य विमर्श प्रकाशन
की संग्रहणीय प्रस्तुति
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं,
अभी इश्क के इम्तिहाँ और भी हैं;
तू शाहीन है परवाज़ है काम तेरा,
तिरे सामने आसमाँ और भी हैं।
सुरेन्द्र मोहन पाठक का जन्म 19 फरवरी, 1940 को पंजाब के खेमकरण में हुआ था। विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि हासिल करने के बाद उन्होंने भारतीय दूरभाष उद्योग में नौकरी कर ली। युवावस्था तक कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय लेखकों को पढ़ने के साथ उन्होंने मारियो पूजो और जेम्स हेडली चेज़ के उपन्यासों का अनुवाद शुरू किया। इसके बाद मौलिक लेखन करने लगे। सन 1959 में, आपकी अपनी कृति, प्रथम कहानी “57 साल पुराना आदमी” मनोहर कहानियां नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। आपका पहला उपन्यास “पुराने गुनाह नए गुनाहगार”, सन 1963 में “नीलम जासूस” नामक पत्रिका में छपा था। सुरेन्द्र मोहन पाठक के प्रसिद्ध उपन्यास असफल अभियान और खाली वार थे, जिन्होंने पाठक जी को प्रसिद्धि के सबसे ऊंचे शिखर पर पहुंचा दिया। इसके पश्चात उन्होंने अभी तक पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उनका पैंसठ लाख की डकैती नामक उपन्यास अंग्रेज़ी में भी छपा और उसकी लाखों प्रतियाँ बिकने की ख़बर चर्चा में रही। उनकी अब तक 313 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनका नवीनतम उपन्यास जीत सिंह सीरीज का ‘दुबई गैंग’ है। उनसे smpmysterywriter@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है। पत्राचार के लिये उनका पता है : पोस्ट बॉक्स नम्बर 9426, दिल्ली – 110051.
good
A Gem from SMP sir as Always
Excellent
Very good
Page no 294 to 338 matter was repeat as it was already read in various lekhkias.