Sugiya – आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आप बहुत दुखी हों, उसी समय माँ का फ़ोन आया हो, आप अपने दिल की बात बता नहीं सकते और सामान्य दिन की तरह बात करने की कोशिश कर रहे हों, पर माँ ही कुछ ऐसा बोल जाए जो आपको सुनकर ढांढस भी मिले बिना उसके जाने?
या कभी ऐसा हुआ हो कि आपने सहसा महसूस किया हो कि माँ की याद सिर्फ इसलिए नहीं आती कि वो अच्छा खाना बना सकती है, उसकी याद इसलिए आती है क्यूंकि आप अचानक ही उसको अपना सच्चा दोस्त मानने लगे हैं। क्यों? कब? कैसे? मालूम नहीं।
यह Sugiya ऐसी ही कुछ भावनाओं का संग्रह है। थोड़ा प्यार है, सम्मान है, उनकी मेहनत को मान, खुद पर कुछ इल्ज़ाम हैं। और किलो भर का अफ़सोस है। यह किताब हर उस मां तक पहुंचे जिनसे सुकून की शायद परिभाषा निकली होगी ।
इसलिए नहीं कि उन्हें इन कविताओं की ज़रूरत है, बल्कि इसलिए कि इन कविताओं को उनकी ज़रूरत है।
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