बिभूति भूषण बंद्योपाध्याय अनुवाद: जयदीप शेखर
साहित्य विमर्श प्रकाशन
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Sundarban Mein Saat Saal| सुंदरबन में सात साल – मेरी राय में, ऐसी रचनाएँ परीकथा या डिटेक्टिव कहानियों के मुकाबले हितकर होती हैं, क्योंकि इन्हें पढ़ने से मन में साहस का संचार होता है और कुछ ज्ञान लाभ भी होता है। साहसिक अभियान या विपत्तिसंकुल घटनावलियों के लिए अफ्रीका या चाँद पर जाने की जरूरत मैं नहीं देखता, हमारे आस-पास जो है, उन्हीं का वर्णन वास्तविकता के नजदीक होता है और यह स्वाभाविक भी जान पड़ता है। सुन्दरबन एक रहस्यमयी स्थान है, निसर्गशोभा नदियाँ, समुद्र, नाना प्रकार की वनस्पतियाँ, जीव-जन्तु, संकट की आशंका- सब यहाँ मौजूद हैं। इन सबके वर्णन एवं चित्रांकन ने आपकी पुस्तक को चित्ताकर्षक बना डाला है। जिनके लिए इसे लिखा गया है, वे पढ़कर बहुत खुश होंगे- इसमें कोई सन्देह नहीं है। – -राजशेखर बसु (बांग्ला लेखक)
इस पुस्तक की कहानी जहाँ बहुत रोचक है वहीं इसकी प्रिंटिंग और डिजाइन कलात्मक है.बच्चों को दिलचस्पी बढ़ेगी इस तरह के बहुत सुंदर साकार सदृश्य चित्र हैं …..