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Samay Seemant इसी विषम समाज में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते पात्रों की एक आत्मीय कथा है। चालिस-बयालीस वर्षों में ये स्थितियां काफी हद तक बदल जानी चाहिए थी। लेकिन ‘समय सीमांत’ का सच आज भी उसी तरह हमारे साथ चल रहा है जहां चंद मुठ्ठी भर लोग अथाह सम्पत्ति के स्वामी बन चुके हैं और नीचे के तबके की आधी जनसंख्या पहले से कहीं अधिक विपन्न और खस्ताहाल दिखाई देने लगी हैं। जनसंख्या के विस्फोट और कमरतोड़ महंगाई ने इस समस्या को और भी गम्भीर बना दिया हैं। समाज में फैली यह विषमता आज शहरों से लेकर गांव तक हर जगह दिखाई देने लगी है।
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