Be the first to review “Rukawat Ke liye Khed Hai | रुकावट के लिए खेद है” Cancel reply

प्रकाशक: संभावना प्रकाशन
₹130 (-35%)
Age Recommendation: Above 12 Years
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Rukawat Ke liye Khed Hai – ‘‘इससे भी अजीबोग़रीब क़िस्सा तेल का था…हमारे पूर्वजों को धरती में से एक ऐसा द्रव मिला था जो इसके भीतर वनस्पति के दबने से लाखों वर्षों में तैयार हुआ था… लेकिन लोगों ने इसे जला जलाकर दो सौ सालों में ही ख़त्म कर डाला था…जब तक तेल था तब तक मोटरकारें और हवाई जहाज़ बिजली की जगह इसी तेल से चलते थे…फिर जब यह ख़त्म हुआ तो इसे लेकर पता नहीं कितनी लड़ाइयाँ लड़ी गयीं…इस्राइल के इतिहासकार गोमिश ने माना है कि प्रकृति के विरुद्ध इंसान का यह जघन्य अपराध तारीख़ कभी माफ़ नहीं कर पाएगी…यह तेल लाखों औषधियों और बहुमूल्य पदार्थों को बनाने में काम आ सकता था…एक अन्य पर्यावरण विशेषज्ञ ने कहा कि यह कौम अगर वक़्त रहते कुछ ज़िम्मेदारी से पेश आयी होती तो आज इस ग्रह का तापमान कम से कम पाँच से दस डिग्री तक कम होता और हमें घर से निकलने से पहले अपनी त्वचा को बचाने के लिए इस इन्फ्रारेड प्रतिरोधक क्रीम को मलने की ज़रूरत न पड़ती…
(इसी पुस्तक की कहानी ‘ख़्वाब इक दीवाने का’ से)
Book Details
Weight | 250 g |
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Dimensions | 14 × 3 × 22 cm |
Pages:   248
Rukawat Ke liye Khed Hai – ‘‘इससे भी अजीबोग़रीब क़िस्सा तेल का था…हमारे पूर्वजों को धरती में से एक ऐसा द्रव मिला था जो इसके भीतर वनस्पति के दबने से लाखों वर्षों में तैयार हुआ था… लेकिन लोगों ने इसे जला जलाकर दो सौ सालों में ही ख़त्म कर डाला था…जब तक तेल था तब तक मोटरकारें और हवाई जहाज़ बिजली की जगह इसी तेल से चलते थे…फिर जब यह ख़त्म हुआ तो इसे लेकर पता नहीं कितनी लड़ाइयाँ लड़ी गयीं…इस्राइल के इतिहासकार गोमिश ने माना है कि प्रकृति के विरुद्ध इंसान का यह जघन्य अपराध तारीख़ कभी माफ़ नहीं कर पाएगी…यह तेल लाखों औषधियों और बहुमूल्य पदार्थों को बनाने में काम आ सकता था…एक अन्य पर्यावरण विशेषज्ञ ने कहा कि यह कौम अगर वक़्त रहते कुछ ज़िम्मेदारी से पेश आयी होती तो आज इस ग्रह का तापमान कम से कम पाँच से दस डिग्री तक कम होता और हमें घर से निकलने से पहले अपनी त्वचा को बचाने के लिए इस इन्फ्रारेड प्रतिरोधक क्रीम को मलने की ज़रूरत न पड़ती…
(इसी पुस्तक की कहानी ‘ख़्वाब इक दीवाने का’ से)
जितेंद्र भाटिया जाने माने साहित्यकार हैं। वह प्रतिनिधि कहानीकार, अनुवादक एंव विचारक हैं। 15 सितंबर 1946 को जन्में जितेंद्र भाटिया आई-आई-टी मुंबई से केमिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी कर चुके हैं।
दूरदर्शन और प्रसार भारती के लिए उनकी कई कहानियों पर लधु फिल्मों का निर्माण हो चुका है।
प्रत्यक्षदर्शी उपन्यास के मराठी अनुवाद को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है।
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