“ये प्रेम में समर्पण का दौर नहीं है, बल्कि कभी न खत्म होने वाली चाहतों और अपेक्षाओं का एक ऐसा सिलसिला है जहाँ असफल होना अपराध है। और यदि किसी कारणवश कोई व्यक्ति सफलता प्राप्त न कर पाए तो उसके जीवन में संघर्ष है, हिंसा है, तनाव है और फिर डिप्रेशन या कहें कि एक धीमी मौत! कहने का तात्पर्य यही है कि उम्र के जिन शुरूआती पड़ावों को सहज प्रेम, आनंद और उल्लास से भरा होना चाहिए था वे चिन्ता और तनाव से भरे हैं। मानवीय जीवन में इससे बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण और क्या घटित हो सकता है!”
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