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सुरेंद्र मोहन पाठक

हिन्दयुग्म प्रकाशन

ISBN: 9-789392-820687 SKU: : HY2537 श्रेणी:
(3 customer review)
Estimated Dispatch: June 6, 2023

219 (-27%)

पाठकों की राय

3 reviews for Paanch Din

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    साहबान!
    हम तो पाठक साहब के उस जमाने से शैदाई हैं, जब हमें कायदे से दाढ़ी मूंछ भी नहीं आई थी और अब भी बदस्तूर पढ़ रहें हैं, जब हमें खिजाब की जरूरत पड़ती है। हमारे महबूब लेखक उसके पहले से अब तक लगातार लिख रहे हैं, टॉप पर बने हैं। रिसालों में जिक्र है उनका, टीवी ,सोशल मीडिया में आमंत्रित किए जाते हैं विशेषज्ञ के रूप में, ये अपने आप में किताब के अच्छे होने की गारंटी है। फिर भी अगर किताब 19 – 20 होगी भी तो उनके अपने बनाए स्तर से ही।
    किताब मुझे मिल गई है, 25 पेज पढ़ भी लिए। फिर रुक गया। आखिर रेगिस्तान में ठंडा पानी मिल जाए तो एक सांस में ही नहीं पी जाते, थोड़ा ठहर ठहर कर आनंद ले कर पीते हैं। तसल्ली से सुधीर रजनी की नोक- झोंक का आनंद लेते, सुधीर के जरिए जीवन की फिलासफी समझते पढ़ रहे हैं। खीर उम्दा पकी है इसका अंदाजा इतने ही पन्नों से हो गया।
    कवर प्रशंसनीय है, दर्शनीय है, किताब के पेज, कलर, फॉन्ट सब अच्छे हैं। प्रूफ की गलती भी अभी तक तो न दिखी।
    कमी के कॉलम में महज इतना क्रि लेखकीय छोटा है, प्यास नहीं बुझी। पिछली किसी किताब पर पाठकों की प्रतिक्रिया का समावेश नहीं है लेखकीय में
    अंत में साहित्य विमर्श को आभार, प्री बुकिंग में सस्ते मूल्य पर किताब का ऑफर और साथ ही बड़े ही काम समय में किताब को सुरक्षित पहुंचाना, बुकिंग प्रक्रिया आसान, ट्रैकिंग की सुविधा, sms और ई मेल में लगातार अपडेट की सुविधा। निश्चित रूप से धन्यवाद की पात्र है टीम साहित्य विमर्श

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    किताब तो अभी हाथ में नहीं आई पर अपने गुणी मित्रो के मुख से इस किताब की तारीफे सुन कर मन में अदम्य उत्कंठा जाग रही है कि कब इसका रसास्वादन करने का मौका मिले।

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    “रोचक, एक ही बैठक में पठनीय”

    मैं सोचता था कि ये महज़ एक चलन है जोकि हर किसी नॉवेल कि पुश्त पर रूटीन तरह छपा होता है
    परंतु ये तो सच में ऐसा ही निकला कि जो एक बार हाथ आया तो ख़त्म कर के ही उठा .

    ख़ाना खाकर रात आठ बजे जो इसको हाथ में लिया, अलसुबह तीन बजे तक एक सपने के माफ़िक़ दिमाग़ को जकड़ा रहा, इतना भाया की क्या बताए…

    बीच बीच में रफ़्तार धीमी भी की और मुड़-मुड़ कर पलट-पलट कर दोबारा पढ़ा।

    इस नावेल की सबसे ख़ास बात है इसमे संग्रहणीय और नये फ़्रेज़ का ख़ज़ाना है जोकि भूल ना जाऊँ इसलिए मोबाइल में उनके स्नेप ले लिए

    वाह वाह नावेल !!

    सुधीर सीरिज़ का अब तक लिखा गया बेहतरीन नावेल

    नॉवेल का घटनाक्रम शायद जनवरी 2020 का है जो कि कोरोना के दौरान लिखा गया था… ये मेरा अंदाज़ा है

    कातिल कौन है ये सस्पेंस अंत तक बना रहा हालाँकि हिंट बराबर मिल रहे थे

    ये नावेल रेगिस्तान के प्यासे को “ओएसिस” जैसा है कही दिनों से तरस रहे पाठको को बेहतरीन तोहफ़ा

    मज़ा आ गया और ऐसे आनंद को शब्दों में बांधना मुश्किल है

    फिर भी कहना चाहूँगा की भरपूर खुराक के साथ “तृप्त” कर दिया

    आपकी लेखनी को सलाम ????

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