यह उपन्यास जेएनयू जीवन पर आधारित है। कहते हैं जो भी यहाँ कुछ साल रहकर पढ़ाई-लिखाई कर लेता है उसे प्रेम हो जाता है, यहाँ की हवा से, पहाड़ी से, यहाँ तक कि कैंटीन, रास्ते और वो सब कुछ से जिसे आँखों से देखा जा सके। जो यहाँ के हो गए वे फिर कहीं और के नहीं हो पाए।
उपन्यास में तीन मुख्य पात्र हैं- शेखर, इवा और जेएनयू। शेखर नाम का एक युवा पूरब से जेएनयू में पढ़ाई के लिए आता है और फिर जेएनयू कैसे शेखर के जीवन को साँचे में ढालता है यही इस उपन्यास का विषय है। यहाँ प्रेम है तो छात्र राजनीति भी, लाइब्रेरी में पढ़ाई है तो लाइब्रेरी कैंटीन में दोस्तों के बीच डिस्कशन भी, द्वेष है और द्वंद्व भी, ऐकडेमिक करियर है तो जीवन के संघर्ष भी। छात्र जीवन के तमाम पहलुओं को आपस में समेटे यह उपन्यास आपको देश के सबसे प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय में आमंत्रित-सा करता प्रतीत होता है।
तो आइए चलते हैं शेखर, इवा और उनके जेएनयू की दुनिया में…
राघवेंद्र सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के महाराजगंज ज़िले में हुआ। इन्होंने स्नातक गोरखपुर विश्वविद्यालय से और परास्नातक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से किया। जेएनयू में रहते संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी की एवं भारतीय प्रशासनिक सेवा 2013 बैच के अधिकारी बने। 615 पूर्वांचल हॉस्टल इनका पहला उपन्यास है।
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