सूरज पॉकेट बुक्स
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Never go back – एक मुश्किल सफर के बाद पूर्व मिलिट्री कॉप जैक रीचर वर्जीनिया पहुँचता है । उसकी मंजिल थी 110वीं मिलिट्री पुलिस जो उसकी पुरानी यूनिट का हेडक्वार्टर था और उसे अपने घर से भी ज्यादा अज़ीज़ था।
रीचर के पास यहाँ वापस आने की कोई खास वजह नहीं थी सिवाय इसके कि उसे नयी कमांडिंग ऑफिसर, मेजर सुज़न टर्नर की आवाज़ फोन पर काफी अच्छी लगी थी।
लेकिन वह जब तक यहाँ पहुँचा सुज़न गायब हो चुकी थी । उसे किसी भारी गड़बड़ की आशंका होने लगी । आगे जो हुआ उसकी रीचर ने उम्मीद नहीं की थी ।
सोलह साल पहले हुई हत्या के आरोप के बावजूद उसे दोबारा आर्मी जॉइन करने का मौका मिल रहा था । क्या रीचर को वापस आने का पछतावा होगा या किसी और को रीचर के वापस आने का ?
प्रस्तुत उपन्यास पर ‘नेवर गो बैक’ नामक हॉलीवुड मूवी बन चुकी है जिसमें टॉम क्रूज ने जैक रीचर का किरदार निभाया था।
विकास नैनवाल जी के उम्दा अनुवाद के कारण यह कथानक पढ़ने का मौका मिल पाया। उन्होंने इतना बढ़िया तरीके से कहानी की नब्ज पकड़कर अनुवाद किया है कि ऐसा लगता है ये पहली बार हिंदी में ही लिखा गया हो।
बहुत बहुत बधाई