हिन्दी साहित्य सदन
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गुरुदत्त के ऐतिहासिक उपन्यासों का कथ्य प्राचीन होते हुए भी समकालीन जैसा ही दिखाई देने लगता है । प्रस्तुत खण्ड के उपन्यास ‘ लुढ़कते पत्थर ‘ के अशोक और ‘ पुष्यमित्र ‘ के बृहद्रथ के राज्यों की दुर्बल नीतियाँ , उनके विनाश , राज्यों के पतन और जनता के असन्तोष का कारण बनी थीं । क्या यही कुछ हम आज के राजनैतिक वातावरण में नहीं पाते ? इस दृष्टि से उनके ऐतिहासिक उपन्यासों में प्रस्तुत तथ्य उनके विशेष दृष्टिकोण का एक महत्त्वपूर्ण पहलू हैं । आज भी राज्याधिकारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार , स्वार्थवश पारस्परिक हित – चिन्तन का अभाव , अनीति , अशान्ति और अस्थिरता का साम्राज्य व्याप्त दिखाई देता है । इस उपन्यास के वर्ण्यकाल में तो केवल राजप्रासादों तथा बौद्ध विहारों में ही षड्यन्त्रों की रचना का उल्लेख पाया जाता है , किन्तु आज के वातावरण में तो नगर – नगर में ही नहीं अपितु नगर की प्रत्येक वीथि तथा ग्राम ग्राम में अपने ही प्रकार के षड्यन्त्र रचे जा रहे हैं , कहीं राज्य के विरुद्ध तो कहीं प्रजा के विरुद्ध स्व ० श्री गुरुदत्त ने अपने उपन्यासों के माध्यम से युग के ऐतिहासिक कर्णधारों को अपने वर्ण्यविषय द्वारा प्रमाण – पुष्ट चेतावनी दी है , दुर्बलता की नीति के परित्याग का आह्वान किया है और उपन्यासों के नायकों के चरित्रों द्वारा उचित और उपयुक्त मार्ग को परिलक्षित किया है । उनका प्रत्येक उपन्यास अन्यतम है । समस्या चाहे ऐतिहासिक हो अथवा राजनैतिक या कुछ अन्य , उन सबका समाधान वे अपने दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने में समर्थ रहे हैं । अपने विस्तृत ज्ञान के आधार पर वे विषय का सम्यक् मन्थन कर पाठक के लिए नवनीत प्रस्तुत कर देते हैं । रोचकता उनके उपन्यासों की अन्य विशेषता है
वैद्य गुरुदत्त, एक विज्ञान के छात्र और पेशे से वैद्य होने के बाद भी उन्होंने बीसवीं शताब्दी के एक सिद्धहस्त लेखक के रूप में अपना नाम कमाया। उन्होंने लगभग दो सौ उपन्यास, संस्मरण, जीवनचरित्र आदि लिखे थे। उनकी रचनाएं भारतीय इतिहास, धर्म, दर्शन, संस्कृति, विज्ञान, राजनीति और समाजशास्त्र के क्षेत्र में अनेक उल्लेखनीय शोध-कृतियों से भी भरी हुई थीं।
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