स्टोरी मे नवीनता है. खास कर पहली बार गौरव इंट्रोड्यूस हुवा तो पाठक अपनी सुझबुझ से समझ जाते है कि यही हथौडी मार है लेकीन लेखक उसी सीन मे पाठको को सही साबित कर चौका देता है.
कहानी अच्छी है लेकीन कंटीन्यूटी मे बहोत सी गलतिया है.
1. जब विघ्नेश की लाश की बाबत इन्स्पेक्टर को खबर मिलती है तो अपने कॉन्स्टेबल को ये कहकर कि वो बेटे को स्कुल छोड के आती है. घर चली जाती है लेकीन बेटे को जगाती तक नही.
2.मृतक का नाम पहले विघ्नेश हेगडे बताया है लेकीन बाद मे हर जगह उसे विघ्नेश शेट्टी कहा गया, जबकि लाश देखने वाली शेट्टी थी, शांता शेट्टी.
३. कॉन्स्टेबल अभी लाश के पास ही है फिर भी ये जान गया कि विघ्नेश के बिजनेस मे क्या झोल था वो क्या इललीगल करता था.
4. लेखक के स्पष्ट न लिखने से ऐसा लगता है जैसे टॅक्सी ड्रायव्हर की कनपटी पर चलती गाडी मे हथौडा मारा गया जो कि एक्सिडेंट का बायस बन सकता था.
५. मराठी मे बहु सास से आदर से बात करती है और सास बहु से तु तकार से लेकीन किताब मे इससे उल्टा लिखा गया है.
6. टॅक्सी ड्रायव्हर को एक जगह दुबला पतला तो एक जगह मजबुत शरीर वाला बताया गया है.
७. जब विघ्नेश की लाश काफी देर बारीश मे भिगती रही तो उसकी उपरी जेब मे रखा बिजनेस कार्ड उस हालत मे नही होता जीससे इन्स्पेक्टर इतनी बडी लीड पाती
8. इन्स्पेक्टर मोर्चरी मे क्या करने गयी थी वो स्पष्ट न हो सका क्योंकी उसे वहा कुछ भी न करते दिखाया गया है.
९. गौरव इन्स्पेक्टर के सर मे प्लास्टिक बैग पहनाकर उसे उल्टा लटकाता है तो जाहीर है उसकी जुल्फे बैग के भीतर थी फिर भी उन्हे फर्श से छुता बताया है.
और भी है लेकिन लिखना जादा हो जायेगा. अच्छी कहानी लिखी है लेकीन लेखक को और सजग रहना होगा.
कहानी का अंत थ्रिलर है लेकीन समझ से परे है. घर मे प्रवेश का एक ही दरवाजा है सीढियो मे वो खुद खडी है तो व्हील चेयर समेत उसका बेटा कैसे गायब हो गया ? फील्मस्टार के मरने की प्रत्यक्ष वजह क्या थी? ये प्रश्न अनुत्तरीत रह जाते है. क्या इसका कोई पार्ट भी आयेगा?
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Suhail
Reviewer
Rated 5 out of 5
Unputdownable Book. A must Read.
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Nitin
Reviewer
Rated 5 out of 5
Fast paced thriller
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Lokesh
Reviewer
Rated 5 out of 5
सत्य व्यास के सारी किताबें पढ़ी है। बहुत ही एक लेखक हैं ।
“एक और कविता सुनोगी?” पीछे से ही उसने पुकारा।
लड़की पीछे नहीं मुड़ी। बस आगे जाते हुए ही उसने बीच की उँगली दिखा दी। वह अभी दो कदम ही आगे बढ़ी थी कि स्टील के चमचमाते हथौड़े का एक जोरदार वार उसकी दायीं कनपटी पर पड़ा और वह झूलकर बेजान पुतले की तरह बायीं ओर गिर गयी।
हत्यारे ने सुप्रिया के सिर से निकलने वाली खून की पतली धार को बहते हुए देखा और उससे अपना पैर बचाते हुए आगे बढ़ गया। उसने बहुत ही करीने से हथौड़ा अपने बैग में रखते हुए कहा –“डिसरिस्पेक्ट ऑफ़ आर्ट एंड पोएट्री इस द फर्स्ट साइन ऑफ़ अ डेड सोसाइटी। तुम्हें जो करना है करो! बट नेवर डिसरिस्पेक्ट एन आर्टिस्ट। कविता सुनने में क्या जाता है? छोटी-सी तो कविता थी।” कहते हुए फिर उसकी आवाज कठोर हुई। उसने लाश की तरफ एक आखिरी निगाह डाली,
आसपास की स्थिति जाँची और बुदबुदाया –
“तुम्हें यंत्रणा दिए बिना मारना
अपूर्ण कर देता मेरे हृदय के एक भाग को
बहुत बेला निंद्रा से उठ बैठता
कामना के ज्वर से तप्त
किसी ऊँचाई पर ले जाकर तुम्हें धक्का देना
कितना उत्तेजक होता
और जो कोलाहल होता पश्चात् उसके
उसमें कितना संगीत होता प्रेयसी”
सत्य व्यास: अस्सी के दशक में बूढ़े हुए। नब्बे के दशक में जवान। इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में बचपना गुजरा और कहते हैं कि नई सदी के दूसरे दशक में पैदा हुए हैं। अब जब पैदा ही हुए हैं तो खूब उत्पात मचा रहे हैं।
चाहते हैं कि उन्हें कॉस्मोपॉलिटन कहा जाए। हालाँकि देश से बाहर बस भूटान गए हैं। पूछने पर बता नहीं पाते कि कहाँ के हैं। उत्तर प्रदेश से जड़ें जुड़ी हैं। २० साल तक जब खुद को बिहारी कहने का सुख लिया तो अचानक ही बताया गया कि अब तुम झारखंडी हो। उसमें भी खुश हैं।
खुद जियो औरों को भी जीने दो के धर्म में विश्वास करते हैं और एक साथ कई-कई चीजें लिखते हैं। अंतर्मुखी हैं इसलिए फोन की जगह ईमेल पर ज्यादा मिलते हैं।
ब्लॉगिंग, कविता और फिल्मों के रुचि रखने वाले सत्य व्यास फ़िलहाल दो फिल्मों की पटकथा लिख रहे हैं। पहले चारों उपन्यास बनारस टॉकीज, दिल्ली दरबार, चौरासी और बाग़ी बलिया ‘दैनिक जागरण-नीलशन बेस्टसेलर’ की सूची में शामिल रहे हैं। तीसरे उपन्यास चौरासी पर ग्रहण के नाम से वेब सीरीज भी बनी। 1931 -देश या प्रेम के बाद लकड़बग्घा इनका सातवाँ उपन्यास है। ईमेल : authorsatya@gmail.com
स्टोरी मे नवीनता है. खास कर पहली बार गौरव इंट्रोड्यूस हुवा तो पाठक अपनी सुझबुझ से समझ जाते है कि यही हथौडी मार है लेकीन लेखक उसी सीन मे पाठको को सही साबित कर चौका देता है.
कहानी अच्छी है लेकीन कंटीन्यूटी मे बहोत सी गलतिया है.
1. जब विघ्नेश की लाश की बाबत इन्स्पेक्टर को खबर मिलती है तो अपने कॉन्स्टेबल को ये कहकर कि वो बेटे को स्कुल छोड के आती है. घर चली जाती है लेकीन बेटे को जगाती तक नही.
2.मृतक का नाम पहले विघ्नेश हेगडे बताया है लेकीन बाद मे हर जगह उसे विघ्नेश शेट्टी कहा गया, जबकि लाश देखने वाली शेट्टी थी, शांता शेट्टी.
३. कॉन्स्टेबल अभी लाश के पास ही है फिर भी ये जान गया कि विघ्नेश के बिजनेस मे क्या झोल था वो क्या इललीगल करता था.
4. लेखक के स्पष्ट न लिखने से ऐसा लगता है जैसे टॅक्सी ड्रायव्हर की कनपटी पर चलती गाडी मे हथौडा मारा गया जो कि एक्सिडेंट का बायस बन सकता था.
५. मराठी मे बहु सास से आदर से बात करती है और सास बहु से तु तकार से लेकीन किताब मे इससे उल्टा लिखा गया है.
6. टॅक्सी ड्रायव्हर को एक जगह दुबला पतला तो एक जगह मजबुत शरीर वाला बताया गया है.
७. जब विघ्नेश की लाश काफी देर बारीश मे भिगती रही तो उसकी उपरी जेब मे रखा बिजनेस कार्ड उस हालत मे नही होता जीससे इन्स्पेक्टर इतनी बडी लीड पाती
8. इन्स्पेक्टर मोर्चरी मे क्या करने गयी थी वो स्पष्ट न हो सका क्योंकी उसे वहा कुछ भी न करते दिखाया गया है.
९. गौरव इन्स्पेक्टर के सर मे प्लास्टिक बैग पहनाकर उसे उल्टा लटकाता है तो जाहीर है उसकी जुल्फे बैग के भीतर थी फिर भी उन्हे फर्श से छुता बताया है.
और भी है लेकिन लिखना जादा हो जायेगा. अच्छी कहानी लिखी है लेकीन लेखक को और सजग रहना होगा.
कहानी का अंत थ्रिलर है लेकीन समझ से परे है. घर मे प्रवेश का एक ही दरवाजा है सीढियो मे वो खुद खडी है तो व्हील चेयर समेत उसका बेटा कैसे गायब हो गया ? फील्मस्टार के मरने की प्रत्यक्ष वजह क्या थी? ये प्रश्न अनुत्तरीत रह जाते है. क्या इसका कोई पार्ट भी आयेगा?
Unputdownable Book. A must Read.
Fast paced thriller
सत्य व्यास के सारी किताबें पढ़ी है। बहुत ही एक लेखक हैं ।
Storyline is okk