KOYLE KI LAKEER | कोयले की लकीर -कई बार पता नहीं होता है कि कौन सी घटना आपके आने वाले जीवन को नयी दिशा देगी, नया रूप देगी, बचपन की घटनाएं तो बचपन की बातें समझ कर अक्सर दिल के एक कोने में संभाल कर रख दी जाती हैं, बस, किसी अनमोल धरोहर की तरह।
पूनम अहमद मुज़फ्फरनगर, उत्तर प्रदेश में पली बढ़ी हैं। फाइन आर्ट्स से एम. ए. किया है।15 वर्षों से लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैं। कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं गृहशोभा, सरिता, मुक्ता, सखी, वनिता, मेरी सहेली, वूमेंस एरा, फेमिना और समाचार पत्रों में लगभग साढ़े पाँच सौ कहानियाँ और करीब दो सौ लेख प्रकाशित हो चुके हैं। कई कहानियों के लिए ‘स्टोरी ऑफ़ द ईयर’ पुरस्कार मिला है। कथा संग्रह, ‘कभी अपने लिए’, ‘कुछ इस तरह’, ‘चिड़िया का बच्चा’ ‘इश्क इसका उसका’, ‘अपने अपने मेघदूत’ और ‘कोयले की लकीर’ प्रकाशित हो चुके हैं। ‘कोयले की लकीर’ को ‘उत्तर प्रियदर्शी सम्मान’ मिला है। ये अपनी सरल, सहज भाषा के लिए जानी जाती हैं। समाज में अपने आसपास घट रही घटनाओं पर, सामाजिक समस्याओं पर, पारिवारिक और व्यवहार संबंधित बातों पर कहानियाँ और लेख लिखना पसंद करती हैं। ‘कभी अपने लिए’ और ‘कुछ इस तरह’ किताबें ऑडियो बुक के रूप में भी आ चुकी हैं। कई कहानियों का ‘प्रकाशक’ ग्रुप के मंच पर नाट्य मंचन किया गया है। ठाणे में रहती हैं। स्वतंत्र लेखन करती हैं।
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