एक बेहतरीन कहानी जिसका मैं तलबगार था। मैं पाठक जी को पिछले १९८४ से पढ़ रहा हूं , जब मैं इंटरमीडिएट का छात्र था। कहानी का संकलन हेतु मैंने इसे खरीदकर अपने लाइब्रेरी में संग्रहीत किया है। सुनील अपने स्टाइल में है और कथानक बेहतरीन है। एक बेहतरीन कहानी की उपलब्धता को सुनिश्चित करने केलिए धन्यवाद
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Jhoothi Aurat
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एक प्रतिष्ठित परिवार की सदस्या
एक ऐसी महिला की कहानी
जो कदम कदम पर झूठ बोलती थी
जिसे अपने हितैषी और मददगार सुनील से भी
झूठ बोलने से कोई गुरेज नहीं था
जिसकी बाबत जिद करने लगी थी कि उसने जिस शख्स को
गोली चलने के बाद मौकाएवारदात से भागते देखा था
वो सुनील था।
झूठी औरत
नया, परिवर्धित संस्करण! मूल कथानक से बिल्कुल जुदा!
जिसे लेखक ने शुरू से आखिर तक फिर से लिखा।
सुरेन्द्र मोहन पाठक का जन्म 19 फरवरी, 1940 को पंजाब के खेमकरण में हुआ था। विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि हासिल करने के बाद उन्होंने भारतीय दूरभाष उद्योग में नौकरी कर ली। युवावस्था तक कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय लेखकों को पढ़ने के साथ उन्होंने मारियो पूजो और जेम्स हेडली चेज़ के उपन्यासों का अनुवाद शुरू किया। इसके बाद मौलिक लेखन करने लगे। सन 1959 में, आपकी अपनी कृति, प्रथम कहानी “57 साल पुराना आदमी” मनोहर कहानियां नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। आपका पहला उपन्यास “पुराने गुनाह नए गुनाहगार”, सन 1963 में “नीलम जासूस” नामक पत्रिका में छपा था। सुरेन्द्र मोहन पाठक के प्रसिद्ध उपन्यास असफल अभियान और खाली वार थे, जिन्होंने पाठक जी को प्रसिद्धि के सबसे ऊंचे शिखर पर पहुंचा दिया। इसके पश्चात उन्होंने अभी तक पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उनका पैंसठ लाख की डकैती नामक उपन्यास अंग्रेज़ी में भी छपा और उसकी लाखों प्रतियाँ बिकने की ख़बर चर्चा में रही। उनकी अब तक 313 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनका नवीनतम उपन्यास जीत सिंह सीरीज का ‘दुबई गैंग’ है। उनसे smpmysterywriter@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है। पत्राचार के लिये उनका पता है : पोस्ट बॉक्स नम्बर 9426, दिल्ली – 110051.
Weight
275 g
Dimensions
20 × 15 × 2.5 cm
फॉर्मैट
पेपरबैक
भाषा
हिंदी
Q & A
क्या बलाईड डील छपेगी या ई बुक पर ही मिलेगीSunil pethkar asked on April 6, 2023
सर, इसके बारे में जानकारी के लिए आप सीधे लेखक को ईमेल कर सकते हैं।
Happy Reading answered on September 6, 2023store manager
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शानदार
एक बेहतरीन कहानी जिसका मैं तलबगार था। मैं पाठक जी को पिछले १९८४ से पढ़ रहा हूं , जब मैं इंटरमीडिएट का छात्र था। कहानी का संकलन हेतु मैंने इसे खरीदकर अपने लाइब्रेरी में संग्रहीत किया है। सुनील अपने स्टाइल में है और कथानक बेहतरीन है। एक बेहतरीन कहानी की उपलब्धता को सुनिश्चित करने केलिए धन्यवाद