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₹299₹200-
‘Allahabad Diary – एक ग़ैर मामूली दास्तान’
हिंदी माध्यम के छात्रों की संघर्ष गाथा है जो सिविल सेवा परीक्षा पास करके आईएएस बनना चाहते हैं। इसी कथा के समानांतर एक दूसरी कथा एक कम उम्र की विधवा शांति की है जिसका बेटा उसे छोड़कर विदेश चला जाता है।
वैधव्य की पीड़ा, पुत्र का देश छोड़कर चले जाना और अकेलेपन की त्रासदी के बीच यह नारी पात्र आज की पीढ़ी पर वर्तमान समाज के परिप्रेक्ष्य में कई मौलिक प्रश्न खड़े करता है।
कहानी पढ़ते समय यह आभास होता है कि यह कथा न केवल समाज में अपना स्थान बनाने की ख़्वाहिश रखने वाले कुछ नवयुवकों की है बल्कि इसमें दो परिस्थितिजन्य पीड़ा से ग्रसित महिलाओं की संघर्ष गाथा भी है।
अनुराग का संघर्ष कहानी में बारीकी से चित्रित किया गया है। इस पात्र का चरित्र उदात्त चरित्र नहीं है।
अपने जीवन के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए वह झूठ-फरेब सब करने को तैयार है। इसकी एक ही नैतिकता है- विजय, चाहे वह किसी के ध्वंस पर ही क्यों न हो। कहानी में हिंदी माध्यम के अन्य पात्र Allahabad (वर्तमान का प्रयागराज) के हिंदी माध्यम छात्र-जीवन को पूरी तरह संदर्भित करते हैं
इस परीक्षा में अँग्रेज़ी के प्रभाव और मातृभाषा के अपमान पर कई अनुत्तरित प्रश्न पर उठाते हैं।
उर्मिला का संघर्ष, शांति की पीड़ा, हिंदी माध्यम के छात्रों की अँग्रेज़ी न जानने की विवशता के मध्य एक संकल्प इन निम्न मध्यवर्गीय छात्रों का कि मैं जन्मा हूँ एक ग़ैर मामूली दास्तान के लिए, कथानक का केंद्र बिंदु है।
Allahabad University, यूनिवर्सिटी रोड, Allahabad के छोटे-छोटे मुहल्ले इस कथानक में दिखाए गए हैं।
कई पात्र इस कहानी के सजीव हैं जिनको आम जीवन से उठाया गया है। अगर ऐसा कहा जाए कि इस कहानी के पात्र कुछ अलग नाम और क़द-काठी के साथ आज भी Allahabad के छात्रावासों और डेलीगेसियों में साँसें ले रहे तो शायद यह अतिशयोक्ति न होगी।
यह भावना के धरातल पर लिखा गया उपन्यास है जिसमें भावनाएँ अक्सर प्रधान हो जाती हैं और पात्रों से अधिक पात्रों की भावनाएँ मस्तिष्क को प्रभावित करने लगती हैं।
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₹175₹120-
Behaya – हमारे देश में शादी और प्यार पर फिल्मों की बड़ी छाप है। लेकिन असल ज़िन्दगी सुनहरे परदे की कहानियों से बहुत अलग होती है।
कई बार राम-रावण अलग-अलग नहीं होते बल्कि वक़्त और हालात के साथ एक ही व्यक्ति किरदार बदलता रहता है।
‘Behaya’ कहानी है सिया और यश की कामयाब और खूबसूरत ज़िन्दगी की। यह कहानी है रूढ़िवादी सोच से उपजे शक़ और बंधनों की। यह कहानी है उत्पीड़न और डर के साये में जीने वाले मुस्कुराते और कामयाब चेहरों की।
यह कहानी है समाज के सामने सशक्त दिखने वालों की मजबूरी और उदारता का जामा ओढ़े हैवानों की भी।
बार-बार कहने पर, देखने पर भी जो बातें जीवनसाथी नहीं समझ पाते; कैसे वही दर्द और टीस एक अनजान व्यक्ति बस आवाज़ सुनकर समझ जाता है? कैसे मुस्कुराते चेहरे के पीछे की उदासी को वह पल भर में भाँप लेता है?
आत्माओं के कनेक्शन से उपजे कुछ खूबसूरत रिश्ते समाज के बंधनों से परे होते हैं। ‘बेहया’ कहानी है सिया और अभिज्ञान के इसी अनकहे, अनजान और अनगढ़े रिश्ते की।
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₹150₹110-
Dhanika – बच्चे को जन्म देते समय 206 हड्डियों के टूटने का दर्द सह लेने वाली औरत एक नाजुक ख्याल दरकने की पीड़ा क्यों बर्दाश्त नहीं कर पाती है? क्या रिश्ते निभाने का अर्थ रूहानी न होकर उम्मीदों और दुनियादारी की जिम्मेदारी का सही गणितीय संतुलन है?
ऐसे आदिम सवालों के जवाब तलाशने Dhanika, प्रेमा, अर्चना, -संजय और वासु के जीवन सफर पर चलिए ‘धनिका’ के साथ। ‘Dhanika’ कहानी उन रिश्तों की जो रह-रहकर पिछले 17 साल से मेरे जेहन में ख़दबद मचाए थे। उन चेहरों की जिन्हें मैं आखिरी साँस तक नहीं भूल सकती।
उन त्रासदियाँ की जिनकी नमी पलकों से आजीवन विदा नहीं ले सकती। उन्हें सांत्वना देने, दुलार भर थपकने की कोशिश है—Dhanika। दो साल पहले जब इसे लिखना शुरू किया था तो आधी-आधी रात तक बरसों पहले गुजर चुके वे आत्मीय पल, वो हृदय विदारक हादसे, वो बिछड़े हुए लोग, वो मधुर मुलाकातें सबने सिलसिलेवार हो धीरे-धीरे एक उपन्यास का रूप ले लिया।
सोचा नहीं था कि इन चरित्रों को विदा कर आपको सौंपते समय मन इतना लबालब हो जाएगा। हर चरित्र की अपनी मजबूरी। कौन सही, कौन गलत का निर्णय आप पर छोड़ा। अनगिनत काबिल लेखकों और असंख्य उम्दा किताबों के बीच इस उपन्यास की क्या महत्ता मुझे नहीं मालूम।
अब समय है ‘धनिका’ संग आपके शरीक होने का ‘तिवारी-सदन’ के आँगन की मध्यमवर्गीय पारिवारिक चर्चाओं में, शिवनाथ घाट किनारे दो युवा मन के बीच दुनिया से छिपकर किए उन वादों को सुनने का जिन पर हालात की गाज गिरने के बाद कोई मोल न बचा।
मंझधार में छूटे लोगों के संघर्ष और सफर को देखने का। डूबते हुए लोगों के तट पर पहुँच जाने के बाद की थकान को अपनी धमनियों में महसूस करने का। धनिका गूँज है हर इंसान के भीतर सहेजे खालीपन की।
आपको बस उसी तरह सौंप रही हूँ जैसे कार्तिक की सर्द सुबह घाट किनारे बैठकर छोड़ देते है वो बहती धार में जलता दीपक महज इस आस के साथ की मेरी आवाज़ पहुँचेगी वहाँ जहाँ इसे सुनने प्रतीक्षा की जा रही है। – Dhanika by Madhu Chaturvedi
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₹125₹100-
Ghar Wapsi – घर वापसी उन विस्थापित लोगों की कहानी है जो बेहतर भविष्य के लक्ष्य का पीछा करते हुए, अपने समाज से दूर होने के बावजूद, वहाँ से पूरी तरह निकल नहीं पाते। यह कहानी बिहार-उत्तर प्रदेश आदि के गाँवों, छोटे शहरों से शिक्षा और नौकरी की तलाश में निकले युवाओं के आंतरिक और बाह्य संघर्ष की कहानी है। अपने जड़ों की एक चिंता से जूझते हुए कि मगर वो वहीं होते, तो शायद कुछ बदलाव ले आते। एक अंतर्द्वंद्व कि अपने नए परिवार, जिसमें पत्नी-बच्चे और उनका भविष्य है, को ताकूँ, या पुराने परिवार को, जिसमें माँ-बाप से लेकर समाज की भी एक वृहद् भूमिका होती है, लगातार चलता रहता है। समाज भी एक परिवार होता है, वो भी एक माँ-बाप का जोड़ा है जो आप में निवेश करता है। ‘मुझे क्या बनना है‘ के उत्तर का पीछा करते हुए मुख्य पात्र आज के समय में एक बेहतर स्थिति में ज़रूर है लेकिन वो परिस्थितिजन्य ‘बेहतरी‘ है। रिश्तों की गहराई और संवेदनाओं के एक वेग में घर वापसी के पात्र बहते हैं। पिता-पुत्र, पति-पत्नी, अल्पवयस्क प्रेमी-प्रेमिका, दोस्ती जैसे वैयक्तिक रिश्तों से लेकर समाज और व्यक्ति के आपसी रिश्तों की कहानी है घर वापसी। कहानी के मुख्य पात्र रवि के अवचेतन में उसी का एक हिस्सा नोचता है, खरोंचता है, चिल्लाता है.. लेकिन उसके चेतन का विस्तार, उसके वर्तमान की चमक उस छटपटाहट को बेआवाज़ बनाकर दबा देते हैं। रवि अपनी अपूर्णताओं को जीते हुए, उनसे लड़ते हुए, बचपन में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर का पीछा करता रहता है कि उसे क्या बनना है। अपने वर्तमान में सामाजिक दृष्टि से ‘सफल‘ रवि का अपने अवचेतन के सामने आने पर, खुद को लंबे रास्ते के दो छोरों को तौलते हुए पाना, और तय करना कि घर लौटूँ, या घर को लौट जाऊँ, ही घर वापसी की आत्मा है।
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350/- ONLY
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Jankipul के संस्थापक प्रभात रंजन की किताब X Y Ka Z एक कहानी संग्रह है। पंकज सुबीर जी इसके बारे में लिखते हैं कि “कुछ अलग तरह का गद्य पढ़ने की खोज में लगे पाठकों की तलाश जिन लेखकों पर जाकर समाप्त होती है, उनमें एक नाम प्रभात रंजन है। कहानी और संस्मरण के बीच आवाजाही करता यह लेखक अपने पाठक को अपनी शैली के प्रवाह और भाषा की रवानगी के साथ बहाए ले जाता हैं।
“jankipul” यह नाम जैसे प्रभात रंजन का ही अब दुसरा नाम हो चुका है”
Nymphomaniac सुरेन्द्र मोहन पाठक का बहुचर्चित उपन्यास है। यह पहली बार 1984 में प्रकाशित हुआ था। यह सुधीर सीरीज़ का उपन्यास है। सुरेन्द्र मोहन पाठक जी भी jankipul व प्रभात रंजन जी से भली भांति परिचित हैं। सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के साक्षात्कार आप jankipul पर पढ़ सकते हैं।
कहानियों के दस्तखत गौरव कुमार निगम का कहानी संग्रह है। यह कहानी संग्रह बहुत विविध है। इसमें हर प्रकार की कहानियाँ हैं जो आपके अंदर रोमांच भी भर सकती हैं और अगले ही पल आपकी आँखों में आँसू लाने का भी दम रखती हैं।
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₹199₹125-
Kabhi Gaon Kabhi College – ये कहानी है ऊँची दुकान के फ़ीके पकवानों की, बड़े-बड़े नाम वालों की, पर छोटे दर्शन वालों की। कहानी में जब-जब कॉलेज का ज्वार चढ़ता है, गाँव में आते ही भाटा सिर पर फूट जाता है।
कहानी के किरदार ऐसे कि प्रैक्टिकल होने के नाम पर ग़रीब आदमी की लंगोट भी खींच लें। कुछ कॉलेज के छात्र ऐसे हैं जिनकी जेबों तक से गाँव की मिट्टी की सुगंध आती है और कुछ ऐसे जो अच्छे शहरों की परवरिश से आकर इस ओखली में अपना सिर दे गए हैं।
कहानी के हर छात्र का सपना आईएएस/आईपीएस बनने का नहीं है, कोई सरपंच भी बनना चाहता है तो कोई कॉलेज ख़त्म होने के पहले ही ब्याह का प्लेसमेंट चाहता है।
कहानी में अर्श है और फ़र्श भी, आसमान भी है और खजूर भी। कहानी में गाँव में कॉलेज है या कॉलेज में गाँव, प्रेम जीतता है या पढ़ाई, दोस्ती जीतती है या लड़ाई– ये आपको तय करना है।
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₹897₹650-
बनारस टॉकीज- बनारस, बी एच यू, रोमांस, सपने, उम्मीदें और एक विस्फोट।
दिल्ली दरबार- राहुल और परिधि की प्रेम कहानी। एक छात्र की बिहार से दिल्ली तक की यात्रा या यूँ कहें कि एक बेफिक्र मस्तमौला के जिम्मेदार बनने की कथा।
चौरासी- शहर बोकारो। 1984 के सिक्ख दंगों की पृष्ठभूमि में रचा गया मार्मिक प्रेमाख्यान
बाग़ी बलिया- बलिया शहर की पृष्ठभूमि में छात्र राजनीति की लोमहर्षक दास्तां
उफ़्फ़ कोलकाता- हॉरर, कॉमेडी और रोमांस का लाजवाब कॉकटेल
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₹199₹130-
Uff Kolkata हिंदी भाषा की पहली हॉरर कॉमेडी कही जा सकती है। इस लिहाज़ से यह एक पहल भी है। कोलकाता के बाहरी भाग में फैले एक विश्वविद्यालय का हॉस्टल, उपन्यास के मुख्य किरदारों की ग़लती से अभिशप्त हो जाता है।
एक आत्मा जो अब हॉस्टल में है, बच्चों को परेशान करती है पर मारती नहीं। इन्हीं पसोपेश, डर, बचने के इंतज़ामात से जो हास्य उत्पन्न होता है, वही इस कहानी का मूल है।
कहानी ख़त्म होते-होते हतप्रभ कर देने वाला मोड़ लेती है, जिसके लिए आप सत्य व्यास और उनकी कहानियों को जानते हैं।
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₹199₹130-
Zero Period – अविनाश की कहानियाँ पढ़ना अपनी खोई हुई स्लैमबुक को फिर से पा लेने जैसा है। – दिव्य प्रकाश दुबे
Zero Period, असल में दो दुनिया के बीच की एक विंडो, जो कुछ पैंतालीस मिनट से लेकर एक घंटे तक की होती थी।
एक दुनिया जिसमें हम स्कूली बच्चे, किताबों के गोवर्धन पहाड़ के नीचे दबे ‘नर्ड-कृष्णा’ की तरह अपने यशोदा-वासुदेवों के सपनों की गुलामी काट रहे थे और दूसरी दुनिया जिसमें हम वृन्दावन में फ्लूट प्ले करते, मक्खन चटोरते, चिल मारते ‘माचो-माखनचोर’ थे।
किताब में कोई ज्ञान दर्शन नहीं है, न किसी की ज़िन्दगी बदल जाएगी इसको पढ़ने के बाद। बस एक छोटे शहर की कहानी है जो एक बच्चे के इर्द-गिर्द घूमती है। किताब ख़त्म होते-होते, उम्मीद है कि आप उस बच्चे को देख, सुन और महसूस कर चुके होंगे;
वैसे ही जैसे सपने में ब्लैक एंड वाइट फ्रेम में कुछ लोग दिखते हैं; जिन्हें लगता है कि कहीं देखा है; पिछले जन्म में या कभी किसी बाज़ार की भीड़ में।
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₹199₹120-
अक्टूबर जंक्शन दिव्य प्रकाश दुबे की चौथी किताब है जो बेस्ट seller रह चुकी है। इस किताब की प्रस्तावना में लिखा है – हमारे पर हर कहानी को सुनाने के दो वर्जन होते हैं, एक दूसरों को सुनाने के लिए और दूसरा खुद को समझाने के लिए। जिस दिन कहानी के दोनों वर्जन एक हो जाते हैं उस दिन लेखक अपनी किताब के पहले पन्ने पर लिख देता है – “इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं, इसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है” ये एक अदना सा झूठ पूरी कहानी को सच्चा बना देता है।
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₹200₹125-
कभी लगता था कि लंबी यात्राओं के लिए मेरे पैरों को अभी कई और साल का संयम चाहिए। वह एक उम्र होगी जिसमें किसी लंबी यात्रा पर निकला जाएगा। इसलिए अब तक मैं छोटी यात्राएँ ही करता रहा था। यूँ किन्हीं छोटी यात्राओं के बीच मैं भटक गया था और मुझे लगने लगा था कि यह छोटी यात्रा मेरे भटकने की वजह से एक लंबी यात्रा में तब्दील हो सकती है। पर इस उत्सुकता के आते ही अगले मोड़ पर ही मुझे उस यात्रा के अंत का रास्ता मिल जाता और मैं फिर उपन्यास के बजाय एक कहानी लेकर घर आ जाता। हर कहानी, उपन्यास हो जाने का सपना अपने भीतर पाले रहती है। तभी इस महामारी ने सारे बाहर को रोक दिया और सारा भीतर बिखरने लगा। हम तैयार नहीं थे और किसी भी तरह की तैयारी काम नहीं आ रही थी। जब हमारे, एक तरीक़े के इंतज़ार ने दम तोड़ दिया और इस महामारी को हमने जीने का हिस्सा मान लिया तब मैंने ख़ुद को संयम के दरवाज़े के सामने खड़ा पाया। इस बार भटकने के सारे रास्ते बंद थे। इस बार छोटी यात्रा में लंबी यात्रा का छलावा भी नहीं था। इस बार भीतर घने जंगल का विस्तार था और उस जंगल में हिरन के दिखते रहने का सुख था। मैंने बिना झिझके संयम का दरवाज़ा खटखटाया और ‘अंतिमा’ ने अपने खंडहर का दरवाज़ा मेरे लिए खोल दिया।
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₹115₹85-
कुल नौ कहानियों का यह संग्रह अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार अपने आप में स्त्री-पुरुष संबंधों की जटिल सच्चाइयों को समेटे हुए है। ये फँतासियों और नाटकीयता से बहुत दूर अवसाद और कुंठाओं की सहज कहानियाँ हैं।
यहाँ आपको पारंपरिक वर्जनाओं और उनसे उपजे अंतर्द्वंद से जूझते ऐसे बहुत से किरदार मिलेंगे जिन पर बंधनों को तोड़ देने का फ़ितूर है और उन्हें तोड़ देने का मलाल भी। ये सभी कहानियाँ एक-दूसरे से बिल्कुल जुदा हैं।
कहानियों की भाषा सरस और प्रवाहमयी है। कहानीकारा ने बेबाक विषयों को बेहद शालीनता से बुना है। एकदम नए शिल्प और शैली की ये कहानियाँ अनायास ही पाठक के भीतर गहरे उतर जाती हैं। इन कहानियों का सबसे प्रबल पक्ष यह है कि सभी कहानियों में कहीं-न-कहीं आप ख़ुद से रू-ब-रू होंगे और कमज़ोरी यह कि ये कहानियाँ आपको बेचैन और बहुत बेचैन कर सकती हैं
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₹199₹125 -
₹150₹100-
18 दिनों में पूरी हुई इस क़रीब 200 किलोमीटर की पैदल यात्रा के रोमांचक अनुभवों का एक गुलदस्ता है ‘इनरलाइन पास’ जो आपको ख़ूबसूरती और जोख़िमों के एकदम चरम तक लेकर जाता है।
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₹199₹125 -
₹150₹100-
‘इलाहाबाद ब्लूज़’ दास्ताँ है साँस लेते उन संस्मरणों की जहाँ इतिहास, संस्कृति और साहित्य की गोद से ज़िंदगी निकल भी रही है और पल-बढ़ भी रही है। इस पुस्तक से गुज़रते हुए पाठकों को यह लगेगा कि वो अपने ही जीवन से कहीं गुज़र रहे हैं। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ की गँवई ज़मीन से शुरू हुई यह यात्रा इलाहाबाद होते हुए यूपीएससी, धौलपुर हाउस और दिल्ली तक का सफ़र तय करती है।
‘इलाहाबाद ब्लूज़’ एक मध्यमवर्गीय जीवन की उड़ान है। इसलिए इसमे जहाँ गाँव की मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू है, वहीं इलाहाबाद की बकैती, छात्र जीवन की मसखरी और फक्कड़पन भी इस पुस्तक की ख़ासियत है। मिडिल क्लास ज़िंदगी के विभिन्न रंगों से सजे हुए संस्मरण बहुत ही रोचक एवं मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किए गए हैं। इसमें एक बोलती-बतियाती, जीती-जागती ज़िंदगी है, संघर्ष है, प्रेम है, पीड़ा है, अथक जिजीविषा है और अंत में कभी भी हार ना मानने का दृढ़-संकल्प है।
पहले से आख़िरी पृष्ठ तक आप कब स्वयं ‘अंजनी’ होते हुए इस पुस्तक से निकलेंगे, यह आपको एहसास ही नहीं होगा।
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₹100₹75 -
₹150₹100-
नीम तले घास के बिछावन-सी मख़मली कहानियाँ। शफ़्फ़ाफ़ बर्फ़ पर स्कीइंग करते स्कीबाज़-सी फिसलती कहानियाँ। गंगा किनारे सखियों संग दौड़ती अल्हड़ बाला की गंगोत्री जल बरसाती हँसी-सी कहानियाँ। इंतज़ार में बुझती विरहिणी-सी जलती कहानियाँ। बेफिक्र, बेलौस यारों संग मुसीबतों की खिल्ली उड़ाती कहानियाँ। इस संग्रह ‘उदास पानी में डूबा चाँद’ की कहानियों में ऐसे कितने ही रंग हैं जो आपको अपने रंग में रंग लेंगे।
कहीं मिलन तो कहीं बिछड़न! कहीं साहसी निर्णय लेती आत्मनिर्भर नायिका तो कहीं सूखे पत्ते-सा टूटकर गिर गया नायक जो धूल झाड़ फ़िर खड़ा होने का हौंसला करता है। लेखक नीरज कुमार उपाध्याय की अनेक रंगों की इन चौदह कहानियों में आपके डूब जाने और खो जाने का पूरा ख़तरा है; किसी की नीम-बाज़ आँखों में डूबकर, किसी की नींद खो जाने-सा।
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₹150₹100 -
₹115₹75
Kabhi Gaon Kabhi College | कभी गाँव कभी कॉलेज
₹199₹125Kabhi Gaon Kabhi College – ये कहानी है ऊँची दुकान के फ़ीके पकवानों की, बड़े-बड़े नाम वालों की, पर छोटे दर्शन वालों की। कहानी में जब-जब कॉलेज का ज्वार चढ़ता है, गाँव में आते ही भाटा सिर पर फूट जाता है।
कहानी के किरदार ऐसे कि प्रैक्टिकल होने के नाम पर ग़रीब आदमी की लंगोट भी खींच लें। कुछ कॉलेज के छात्र ऐसे हैं जिनकी जेबों तक से गाँव की मिट्टी की सुगंध आती है और कुछ ऐसे जो अच्छे शहरों की परवरिश से आकर इस ओखली में अपना सिर दे गए हैं।
कहानी के हर छात्र का सपना आईएएस/आईपीएस बनने का नहीं है, कोई सरपंच भी बनना चाहता है तो कोई कॉलेज ख़त्म होने के पहले ही ब्याह का प्लेसमेंट चाहता है।
कहानी में अर्श है और फ़र्श भी, आसमान भी है और खजूर भी। कहानी में गाँव में कॉलेज है या कॉलेज में गाँव, प्रेम जीतता है या पढ़ाई, दोस्ती जीतती है या लड़ाई– ये आपको तय करना है।
Jankipul Combo 350 Free Delivery
350/- ONLY
Jankipul के संस्थापक प्रभात रंजन की किताब X Y Ka Z एक कहानी संग्रह है। पंकज सुबीर जी इसके बारे में लिखते हैं कि “कुछ अलग तरह का गद्य पढ़ने की खोज में लगे पाठकों की तलाश जिन लेखकों पर जाकर समाप्त होती है, उनमें एक नाम प्रभात रंजन है। कहानी और संस्मरण के बीच आवाजाही करता यह लेखक अपने पाठक को अपनी शैली के प्रवाह और भाषा की रवानगी के साथ बहाए ले जाता हैं।
“jankipul” यह नाम जैसे प्रभात रंजन का ही अब दुसरा नाम हो चुका है”
Nymphomaniac सुरेन्द्र मोहन पाठक का बहुचर्चित उपन्यास है। यह पहली बार 1984 में प्रकाशित हुआ था। यह सुधीर सीरीज़ का उपन्यास है। सुरेन्द्र मोहन पाठक जी भी jankipul व प्रभात रंजन जी से भली भांति परिचित हैं। सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के साक्षात्कार आप jankipul पर पढ़ सकते हैं।
कहानियों के दस्तखत गौरव कुमार निगम का कहानी संग्रह है। यह कहानी संग्रह बहुत विविध है। इसमें हर प्रकार की कहानियाँ हैं जो आपके अंदर रोमांच भी भर सकती हैं और अगले ही पल आपकी आँखों में आँसू लाने का भी दम रखती हैं।
Allahabad Diary । इलाहाबाद डायरी
₹299₹200‘Allahabad Diary – एक ग़ैर मामूली दास्तान’
हिंदी माध्यम के छात्रों की संघर्ष गाथा है जो सिविल सेवा परीक्षा पास करके आईएएस बनना चाहते हैं। इसी कथा के समानांतर एक दूसरी कथा एक कम उम्र की विधवा शांति की है जिसका बेटा उसे छोड़कर विदेश चला जाता है।
वैधव्य की पीड़ा, पुत्र का देश छोड़कर चले जाना और अकेलेपन की त्रासदी के बीच यह नारी पात्र आज की पीढ़ी पर वर्तमान समाज के परिप्रेक्ष्य में कई मौलिक प्रश्न खड़े करता है।
कहानी पढ़ते समय यह आभास होता है कि यह कथा न केवल समाज में अपना स्थान बनाने की ख़्वाहिश रखने वाले कुछ नवयुवकों की है बल्कि इसमें दो परिस्थितिजन्य पीड़ा से ग्रसित महिलाओं की संघर्ष गाथा भी है।
अनुराग का संघर्ष कहानी में बारीकी से चित्रित किया गया है। इस पात्र का चरित्र उदात्त चरित्र नहीं है।
अपने जीवन के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए वह झूठ-फरेब सब करने को तैयार है। इसकी एक ही नैतिकता है- विजय, चाहे वह किसी के ध्वंस पर ही क्यों न हो। कहानी में हिंदी माध्यम के अन्य पात्र Allahabad (वर्तमान का प्रयागराज) के हिंदी माध्यम छात्र-जीवन को पूरी तरह संदर्भित करते हैं
इस परीक्षा में अँग्रेज़ी के प्रभाव और मातृभाषा के अपमान पर कई अनुत्तरित प्रश्न पर उठाते हैं।
उर्मिला का संघर्ष, शांति की पीड़ा, हिंदी माध्यम के छात्रों की अँग्रेज़ी न जानने की विवशता के मध्य एक संकल्प इन निम्न मध्यवर्गीय छात्रों का कि मैं जन्मा हूँ एक ग़ैर मामूली दास्तान के लिए, कथानक का केंद्र बिंदु है।
Allahabad University, यूनिवर्सिटी रोड, Allahabad के छोटे-छोटे मुहल्ले इस कथानक में दिखाए गए हैं।
कई पात्र इस कहानी के सजीव हैं जिनको आम जीवन से उठाया गया है। अगर ऐसा कहा जाए कि इस कहानी के पात्र कुछ अलग नाम और क़द-काठी के साथ आज भी Allahabad के छात्रावासों और डेलीगेसियों में साँसें ले रहे तो शायद यह अतिशयोक्ति न होगी।
यह भावना के धरातल पर लिखा गया उपन्यास है जिसमें भावनाएँ अक्सर प्रधान हो जाती हैं और पात्रों से अधिक पात्रों की भावनाएँ मस्तिष्क को प्रभावित करने लगती हैं।
Zero Period | ज़ीरो पीरीअड
₹199₹130Zero Period – अविनाश की कहानियाँ पढ़ना अपनी खोई हुई स्लैमबुक को फिर से पा लेने जैसा है। – दिव्य प्रकाश दुबे
Zero Period, असल में दो दुनिया के बीच की एक विंडो, जो कुछ पैंतालीस मिनट से लेकर एक घंटे तक की होती थी।
एक दुनिया जिसमें हम स्कूली बच्चे, किताबों के गोवर्धन पहाड़ के नीचे दबे ‘नर्ड-कृष्णा’ की तरह अपने यशोदा-वासुदेवों के सपनों की गुलामी काट रहे थे और दूसरी दुनिया जिसमें हम वृन्दावन में फ्लूट प्ले करते, मक्खन चटोरते, चिल मारते ‘माचो-माखनचोर’ थे।
किताब में कोई ज्ञान दर्शन नहीं है, न किसी की ज़िन्दगी बदल जाएगी इसको पढ़ने के बाद। बस एक छोटे शहर की कहानी है जो एक बच्चे के इर्द-गिर्द घूमती है। किताब ख़त्म होते-होते, उम्मीद है कि आप उस बच्चे को देख, सुन और महसूस कर चुके होंगे;
वैसे ही जैसे सपने में ब्लैक एंड वाइट फ्रेम में कुछ लोग दिखते हैं; जिन्हें लगता है कि कहीं देखा है; पिछले जन्म में या कभी किसी बाज़ार की भीड़ में।
Dhanika | धनिका
₹150₹110Dhanika – बच्चे को जन्म देते समय 206 हड्डियों के टूटने का दर्द सह लेने वाली औरत एक नाजुक ख्याल दरकने की पीड़ा क्यों बर्दाश्त नहीं कर पाती है? क्या रिश्ते निभाने का अर्थ रूहानी न होकर उम्मीदों और दुनियादारी की जिम्मेदारी का सही गणितीय संतुलन है?
ऐसे आदिम सवालों के जवाब तलाशने Dhanika, प्रेमा, अर्चना, -संजय और वासु के जीवन सफर पर चलिए ‘धनिका’ के साथ। ‘Dhanika’ कहानी उन रिश्तों की जो रह-रहकर पिछले 17 साल से मेरे जेहन में ख़दबद मचाए थे। उन चेहरों की जिन्हें मैं आखिरी साँस तक नहीं भूल सकती।
उन त्रासदियाँ की जिनकी नमी पलकों से आजीवन विदा नहीं ले सकती। उन्हें सांत्वना देने, दुलार भर थपकने की कोशिश है—Dhanika। दो साल पहले जब इसे लिखना शुरू किया था तो आधी-आधी रात तक बरसों पहले गुजर चुके वे आत्मीय पल, वो हृदय विदारक हादसे, वो बिछड़े हुए लोग, वो मधुर मुलाकातें सबने सिलसिलेवार हो धीरे-धीरे एक उपन्यास का रूप ले लिया।
सोचा नहीं था कि इन चरित्रों को विदा कर आपको सौंपते समय मन इतना लबालब हो जाएगा। हर चरित्र की अपनी मजबूरी। कौन सही, कौन गलत का निर्णय आप पर छोड़ा। अनगिनत काबिल लेखकों और असंख्य उम्दा किताबों के बीच इस उपन्यास की क्या महत्ता मुझे नहीं मालूम।
अब समय है ‘धनिका’ संग आपके शरीक होने का ‘तिवारी-सदन’ के आँगन की मध्यमवर्गीय पारिवारिक चर्चाओं में, शिवनाथ घाट किनारे दो युवा मन के बीच दुनिया से छिपकर किए उन वादों को सुनने का जिन पर हालात की गाज गिरने के बाद कोई मोल न बचा।
मंझधार में छूटे लोगों के संघर्ष और सफर को देखने का। डूबते हुए लोगों के तट पर पहुँच जाने के बाद की थकान को अपनी धमनियों में महसूस करने का। धनिका गूँज है हर इंसान के भीतर सहेजे खालीपन की।
आपको बस उसी तरह सौंप रही हूँ जैसे कार्तिक की सर्द सुबह घाट किनारे बैठकर छोड़ देते है वो बहती धार में जलता दीपक महज इस आस के साथ की मेरी आवाज़ पहुँचेगी वहाँ जहाँ इसे सुनने प्रतीक्षा की जा रही है। – Dhanika by Madhu Chaturvedi
Behaya | बेहया
₹175₹120Behaya – हमारे देश में शादी और प्यार पर फिल्मों की बड़ी छाप है। लेकिन असल ज़िन्दगी सुनहरे परदे की कहानियों से बहुत अलग होती है।
कई बार राम-रावण अलग-अलग नहीं होते बल्कि वक़्त और हालात के साथ एक ही व्यक्ति किरदार बदलता रहता है।
‘Behaya’ कहानी है सिया और यश की कामयाब और खूबसूरत ज़िन्दगी की। यह कहानी है रूढ़िवादी सोच से उपजे शक़ और बंधनों की। यह कहानी है उत्पीड़न और डर के साये में जीने वाले मुस्कुराते और कामयाब चेहरों की।
यह कहानी है समाज के सामने सशक्त दिखने वालों की मजबूरी और उदारता का जामा ओढ़े हैवानों की भी।
बार-बार कहने पर, देखने पर भी जो बातें जीवनसाथी नहीं समझ पाते; कैसे वही दर्द और टीस एक अनजान व्यक्ति बस आवाज़ सुनकर समझ जाता है? कैसे मुस्कुराते चेहरे के पीछे की उदासी को वह पल भर में भाँप लेता है?
आत्माओं के कनेक्शन से उपजे कुछ खूबसूरत रिश्ते समाज के बंधनों से परे होते हैं। ‘बेहया’ कहानी है सिया और अभिज्ञान के इसी अनकहे, अनजान और अनगढ़े रिश्ते की।
कैसा कुत्ता है | Kaisa Kutta Hai
₹199₹130‘कैसा कुत्ता है!’ | ‘Kaisa Kutta Hai’ घुमक्कड़ कलाकार, गायक और कवि राहगीर की कविताओं का पहला संकलन है। इस संग्रह में राहगीर के लोकप्रिय गीतों के साथ बहुत-से ऐसे गीत और कविताएँ शामिल हैं, जो अभी तक न कहीं प्रकाशित हुए हैं और न ही प्रस्तुत।
द चिरकुट्स | The Chirkuts
₹150₹100The Chirkuts- हॉस्टल जीवन के चार दोस्तों के सुख-दुख, प्यार-मुहब्बत, सपनों-उपलब्धियों की कहानी है। यह दोस्ती का सेलिब्रेशन है।
गाँधी की सुंदरता
₹150₹100महात्मा गाँधी पर एक नई समझ समय की ज़रूरत है। हमें लगता है कि हम गाँधीजी को जानते हैं, जबकि वैसा है नहीं। हालात तब और जटिल हो जाते हैं, जब हम देखते हैं कि विपरीत लक्ष्यों को लेकर चलने वाली विचारधाराएँ गाँधी-विचार की खंडित व्याख्याएँ करते हुए उन्हें अपने हितपोषण के लिए अपहृत करती हैं।
आज हम देखते हैं कि यत्र-तत्र गाँधीजी को लेकर सतही सूचनाओं का घटाटोप है, किंतु एक उजली और धारदार समझ उससे नहीं बन पाती है। यह पुस्तक इस अभाव की पूर्ति करती है। इसे आप गाँधी-विचार में प्रवेश की प्राथमिकी भी कह सकते हैं।
यह गाँधीजी से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नों पर यथेष्ट गम्भीरता, प्रामाणिकता और सुस्पष्टता से व्याख्यान करती है और हमारे सामने उनके उचित परिप्रेक्ष्यों को प्रकट करती है। यह एक महात्मा के भीतर के मानुष को प्रकाशित करने का उद्यम भी है। इस छोटी-सी पुस्तक में गाँधीजी को समझने की सिलसिलेवार कुंजियाँ निहित हैं।
इलाहाबाद ब्लूज़
₹150₹100‘इलाहाबाद ब्लूज़’ दास्ताँ है साँस लेते उन संस्मरणों की जहाँ इतिहास, संस्कृति और साहित्य की गोद से ज़िंदगी निकल भी रही है और पल-बढ़ भी रही है। इस पुस्तक से गुज़रते हुए पाठकों को यह लगेगा कि वो अपने ही जीवन से कहीं गुज़र रहे हैं। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ की गँवई ज़मीन से शुरू हुई यह यात्रा इलाहाबाद होते हुए यूपीएससी, धौलपुर हाउस और दिल्ली तक का सफ़र तय करती है।
‘इलाहाबाद ब्लूज़’ एक मध्यमवर्गीय जीवन की उड़ान है। इसलिए इसमे जहाँ गाँव की मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू है, वहीं इलाहाबाद की बकैती, छात्र जीवन की मसखरी और फक्कड़पन भी इस पुस्तक की ख़ासियत है। मिडिल क्लास ज़िंदगी के विभिन्न रंगों से सजे हुए संस्मरण बहुत ही रोचक एवं मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किए गए हैं। इसमें एक बोलती-बतियाती, जीती-जागती ज़िंदगी है, संघर्ष है, प्रेम है, पीड़ा है, अथक जिजीविषा है और अंत में कभी भी हार ना मानने का दृढ़-संकल्प है।
पहले से आख़िरी पृष्ठ तक आप कब स्वयं ‘अंजनी’ होते हुए इस पुस्तक से निकलेंगे, यह आपको एहसास ही नहीं होगा।