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₹390₹235-
Baali – एक भीषण आतंकवादी हमले के पश्चात कुछ निष्क्रिय संगठन पुन: सुप्तावस्था से बाहर आ गये और आरंभ हो गई भीषण नरसंहारो की एक अघोषित श्रृंखला जिसने देश के साथ-साथ सम्पूर्ण विश्व को हिला कर रख दिया।
इस Baali श्रृंखला से एक रहस्यमयी योद्धा ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई जिसकी जड़ें प्राचीन भारत की गाथाओं से जुड़ी हुई थी, वह जिस उद्देश के लिए प्रतिबद्ध था उसने समूचे विश्व की धारणाओं एवं इतिहास के साथ-साथ वर्तमान और भविष्य तक को बदल कर रख दिया।
सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग तक छिपा हुआ एक रहस्य, एक ऐसी शक्ति, जो सम्पूर्ण विश्व के साथ-साथ एक समूचे युग को परिवर्तित करने की क्षमता रखती थी। जातियों-प्रजातियों के मध्य अस्तित्व की महीन सीमा रेखा के मिथकों को जिसने बिखेर कर रख दिया।
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₹175₹120-
Behaya – हमारे देश में शादी और प्यार पर फिल्मों की बड़ी छाप है। लेकिन असल ज़िन्दगी सुनहरे परदे की कहानियों से बहुत अलग होती है।
कई बार राम-रावण अलग-अलग नहीं होते बल्कि वक़्त और हालात के साथ एक ही व्यक्ति किरदार बदलता रहता है।
‘Behaya’ कहानी है सिया और यश की कामयाब और खूबसूरत ज़िन्दगी की। यह कहानी है रूढ़िवादी सोच से उपजे शक़ और बंधनों की। यह कहानी है उत्पीड़न और डर के साये में जीने वाले मुस्कुराते और कामयाब चेहरों की।
यह कहानी है समाज के सामने सशक्त दिखने वालों की मजबूरी और उदारता का जामा ओढ़े हैवानों की भी।
बार-बार कहने पर, देखने पर भी जो बातें जीवनसाथी नहीं समझ पाते; कैसे वही दर्द और टीस एक अनजान व्यक्ति बस आवाज़ सुनकर समझ जाता है? कैसे मुस्कुराते चेहरे के पीछे की उदासी को वह पल भर में भाँप लेता है?
आत्माओं के कनेक्शन से उपजे कुछ खूबसूरत रिश्ते समाज के बंधनों से परे होते हैं। ‘बेहया’ कहानी है सिया और अभिज्ञान के इसी अनकहे, अनजान और अनगढ़े रिश्ते की।
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₹150₹110-
Best Seller – जीतने की जद्दोजहद में लोग क्या और कितना हार जाते हैं ये सफर के आखरी पड़ाव में और मंज़िल पर पहुँचने से पहले पता चल जाता है। लेकिन कुछ लोग इसे नजरअंदाज करना ही नियति बना लेते हैं।
Best seller की कहानी में सैकड़ों उतार चढ़ाव हैं।
उनके साथ फिर वही होता है जो सादिक के साथ हुआ।
आईना से प्यार और फिर शादी लेकिन इंटरनेशनल लेवल का Best seller बनने की उसकी ख्वाहिश अभी पूरी नहीं हो रही थी।
हिंदी ऑथर के लिए आसान है? आईना के पापा, प्रभात शेखावत खुद इंटरनेशनल बेस्टसेलर हैं तो फिर रास्ता आसान हो, शायद! शैलेष और अंशुल केसरी, पब्लिशिंग इंडस्ट्री के दो ऐसे दिग्गज जो किसी ऑथर का साथ दें, तो सब मुमकिन है।
फिर इनमें से कौन साथ देगा सादिक का? क्योंकि बेस्टसेलर बनना हर तरीके से फायदे का सौदा होता है! क्या ये कहानी वाकई सादिक की है या किसी ऐसे शख्स की है जिसने बेस्टसेलर बनने का सबसे अलग रास्ता चुना? पढ़िये और बताइए कि बेस्टसेलर कौन बना!
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₹150₹110-
Dhanika – बच्चे को जन्म देते समय 206 हड्डियों के टूटने का दर्द सह लेने वाली औरत एक नाजुक ख्याल दरकने की पीड़ा क्यों बर्दाश्त नहीं कर पाती है? क्या रिश्ते निभाने का अर्थ रूहानी न होकर उम्मीदों और दुनियादारी की जिम्मेदारी का सही गणितीय संतुलन है?
ऐसे आदिम सवालों के जवाब तलाशने Dhanika, प्रेमा, अर्चना, -संजय और वासु के जीवन सफर पर चलिए ‘धनिका’ के साथ। ‘Dhanika’ कहानी उन रिश्तों की जो रह-रहकर पिछले 17 साल से मेरे जेहन में ख़दबद मचाए थे। उन चेहरों की जिन्हें मैं आखिरी साँस तक नहीं भूल सकती।
उन त्रासदियाँ की जिनकी नमी पलकों से आजीवन विदा नहीं ले सकती। उन्हें सांत्वना देने, दुलार भर थपकने की कोशिश है—Dhanika। दो साल पहले जब इसे लिखना शुरू किया था तो आधी-आधी रात तक बरसों पहले गुजर चुके वे आत्मीय पल, वो हृदय विदारक हादसे, वो बिछड़े हुए लोग, वो मधुर मुलाकातें सबने सिलसिलेवार हो धीरे-धीरे एक उपन्यास का रूप ले लिया।
सोचा नहीं था कि इन चरित्रों को विदा कर आपको सौंपते समय मन इतना लबालब हो जाएगा। हर चरित्र की अपनी मजबूरी। कौन सही, कौन गलत का निर्णय आप पर छोड़ा। अनगिनत काबिल लेखकों और असंख्य उम्दा किताबों के बीच इस उपन्यास की क्या महत्ता मुझे नहीं मालूम।
अब समय है ‘धनिका’ संग आपके शरीक होने का ‘तिवारी-सदन’ के आँगन की मध्यमवर्गीय पारिवारिक चर्चाओं में, शिवनाथ घाट किनारे दो युवा मन के बीच दुनिया से छिपकर किए उन वादों को सुनने का जिन पर हालात की गाज गिरने के बाद कोई मोल न बचा।
मंझधार में छूटे लोगों के संघर्ष और सफर को देखने का। डूबते हुए लोगों के तट पर पहुँच जाने के बाद की थकान को अपनी धमनियों में महसूस करने का। धनिका गूँज है हर इंसान के भीतर सहेजे खालीपन की।
आपको बस उसी तरह सौंप रही हूँ जैसे कार्तिक की सर्द सुबह घाट किनारे बैठकर छोड़ देते है वो बहती धार में जलता दीपक महज इस आस के साथ की मेरी आवाज़ पहुँचेगी वहाँ जहाँ इसे सुनने प्रतीक्षा की जा रही है। – Dhanika by Madhu Chaturvedi
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₹125₹100-
Ghar Wapsi – घर वापसी उन विस्थापित लोगों की कहानी है जो बेहतर भविष्य के लक्ष्य का पीछा करते हुए, अपने समाज से दूर होने के बावजूद, वहाँ से पूरी तरह निकल नहीं पाते। यह कहानी बिहार-उत्तर प्रदेश आदि के गाँवों, छोटे शहरों से शिक्षा और नौकरी की तलाश में निकले युवाओं के आंतरिक और बाह्य संघर्ष की कहानी है। अपने जड़ों की एक चिंता से जूझते हुए कि मगर वो वहीं होते, तो शायद कुछ बदलाव ले आते। एक अंतर्द्वंद्व कि अपने नए परिवार, जिसमें पत्नी-बच्चे और उनका भविष्य है, को ताकूँ, या पुराने परिवार को, जिसमें माँ-बाप से लेकर समाज की भी एक वृहद् भूमिका होती है, लगातार चलता रहता है। समाज भी एक परिवार होता है, वो भी एक माँ-बाप का जोड़ा है जो आप में निवेश करता है। ‘मुझे क्या बनना है‘ के उत्तर का पीछा करते हुए मुख्य पात्र आज के समय में एक बेहतर स्थिति में ज़रूर है लेकिन वो परिस्थितिजन्य ‘बेहतरी‘ है। रिश्तों की गहराई और संवेदनाओं के एक वेग में घर वापसी के पात्र बहते हैं। पिता-पुत्र, पति-पत्नी, अल्पवयस्क प्रेमी-प्रेमिका, दोस्ती जैसे वैयक्तिक रिश्तों से लेकर समाज और व्यक्ति के आपसी रिश्तों की कहानी है घर वापसी। कहानी के मुख्य पात्र रवि के अवचेतन में उसी का एक हिस्सा नोचता है, खरोंचता है, चिल्लाता है.. लेकिन उसके चेतन का विस्तार, उसके वर्तमान की चमक उस छटपटाहट को बेआवाज़ बनाकर दबा देते हैं। रवि अपनी अपूर्णताओं को जीते हुए, उनसे लड़ते हुए, बचपन में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर का पीछा करता रहता है कि उसे क्या बनना है। अपने वर्तमान में सामाजिक दृष्टि से ‘सफल‘ रवि का अपने अवचेतन के सामने आने पर, खुद को लंबे रास्ते के दो छोरों को तौलते हुए पाना, और तय करना कि घर लौटूँ, या घर को लौट जाऊँ, ही घर वापसी की आत्मा है।
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₹225₹170-
Goli – ‘‘मैं जन्मजात अभागिनी हूँ। स्त्री जाति का कलंक हूँ। परन्तु मैं निर्दोष हूँ, निष्पाप हूँ। मेरा दुर्भाग्य मेरा अपना नहीं है, मेरी जाति का है, जाति-परम्परा का है; हम पैदा ही इसलिए होते हैं कि कलंकित जीवन व्यतीत करें।
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₹199₹189-
अनुपम सौन्दर्य की मालकिन अनुपमा। जब इस अनुपम सौन्दर्य की जुगलबंदी उसके खतरनाक दिमाग से हुई तो जैसे कहर बरपा हो गया। क्या कोई उसके जादू से बच पाया?
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₹200₹140-
JOKER – जोकर के दो पीछे जोकर, बोलो कितने जोकर?” – इस पहेली के साथ जोकर ने एक बार फिर हिंदुस्तान की सरजमीं पर कदम रखे और पहुंचा मुंबई की सेंट्रल जेल के अंदर एक खास मिशन के लिये एक खास पार्टनर की तलाश में ।
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₹199₹125-
Kabhi Gaon Kabhi College – ये कहानी है ऊँची दुकान के फ़ीके पकवानों की, बड़े-बड़े नाम वालों की, पर छोटे दर्शन वालों की। कहानी में जब-जब कॉलेज का ज्वार चढ़ता है, गाँव में आते ही भाटा सिर पर फूट जाता है।
कहानी के किरदार ऐसे कि प्रैक्टिकल होने के नाम पर ग़रीब आदमी की लंगोट भी खींच लें। कुछ कॉलेज के छात्र ऐसे हैं जिनकी जेबों तक से गाँव की मिट्टी की सुगंध आती है और कुछ ऐसे जो अच्छे शहरों की परवरिश से आकर इस ओखली में अपना सिर दे गए हैं।
कहानी के हर छात्र का सपना आईएएस/आईपीएस बनने का नहीं है, कोई सरपंच भी बनना चाहता है तो कोई कॉलेज ख़त्म होने के पहले ही ब्याह का प्लेसमेंट चाहता है।
कहानी में अर्श है और फ़र्श भी, आसमान भी है और खजूर भी। कहानी में गाँव में कॉलेज है या कॉलेज में गाँव, प्रेम जीतता है या पढ़ाई, दोस्ती जीतती है या लड़ाई– ये आपको तय करना है।
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₹680₹380-
Never go back – एक मुश्किल सफर के बाद पूर्व मिलिट्री कॉप जैक रीचर वर्जीनिया पहुँचता है । उसकी मंजिल थी 110वीं मिलिट्री पुलिस जो उसकी पुरानी यूनिट का हेडक्वार्टर था और उसे अपने घर से भी ज्यादा अज़ीज़ था।
रीचर के पास यहाँ वापस आने की कोई खास वजह नहीं थी सिवाय इसके कि उसे नयी कमांडिंग ऑफिसर, मेजर सुज़न टर्नर की आवाज़ फोन पर काफी अच्छी लगी थी।
लेकिन वह जब तक यहाँ पहुँचा सुज़न गायब हो चुकी थी । उसे किसी भारी गड़बड़ की आशंका होने लगी । आगे जो हुआ उसकी रीचर ने उम्मीद नहीं की थी ।
सोलह साल पहले हुई हत्या के आरोप के बावजूद उसे दोबारा आर्मी जॉइन करने का मौका मिल रहा था । क्या रीचर को वापस आने का पछतावा होगा या किसी और को रीचर के वापस आने का ?
प्रस्तुत उपन्यास पर ‘नेवर गो बैक’ नामक हॉलीवुड मूवी बन चुकी है जिसमें टॉम क्रूज ने जैक रीचर का किरदार निभाया था।
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₹250₹165-
Pratyakshdarshi – यह उपन्यास सारी विपरीत स्थितियों के बीच अपनी जिजीविषा बनाए रखने वालों की आत्मीय कथा है। उपन्यास का समय-काल इस शहर के इतिहास का ऐसा दौर था जब यहां की मुख्य सड़कें पाताल रेल के गड्ढों और ज़मीन से खोदी गयी मिट्टी के पहाड़ों और उन कृत्रिम विपदाओं के बीच किसी तरह रास्ता बनाते आम नागरिकों से भरी थी; ‘लोडशेडिंग’ के चलते जहां रिहाइशी बस्तियों में घंटों या पहरों तक बिजली गायब रहती थी;
उमस के मारे भीड़ भरी प्राइवेट बसों, ट्रामों और नीची छत वाली मिनी बसों में लटककर सफर करना मुहाल था और हुगली नदी से सटा शहर का गोदी वाला इलाका अपनी तस्करी गतिविधियों के लिए कुख्यात हो चुका था। युवकों में बेरोज़गारी अपने चरम तक पहुंच चुकी थी।
जिस माझेरहाट (बीच के बाज़ार) का पुल अभी हाल ही में भरभराकर गिर गया, रेल पटरी के समानांतर उसके नीचे से गुज़रते हुए या उससे कुछ आगे ‘लेवेल क्रॉसिंग’ फाटक के खुलने का इंतज़ार करते हुए हमारा साबका हर रोज़ फेरीवालों के उस चमत्कृत संसार से होता था, जिसमें रुमालों, अंडरवियरों, अगरबत्तियों, फाउंटेन पेनों से लेकर ‘पुलपुल भाजा’ और बच्चों के खिलौनों तक कुछ भी खरीदा जा सकता था।
इन फेरीवालों में बहुत से पढ़े लिखे और शिक्षा प्राप्त नौजवान भी थे जो किसी ढंग की नौकरी की तलाश में धीरे-धीरे अधेड़ और फिर बूढ़े हो गए थे। ज़िंदगी की मामूली चीज़ों के लिए संघर्ष करते इन तमाम चेहरों के बीच यह शहर आज भी उतना ही खस्ताहाल, उतना ही विपन्न, मगर उतना ही जीवंत, उतना ही ज़ि़ंदा है, जितना आज से चालीस वर्ष पहले, सत्तर-अस्सी के उस संक्रमण काल में था।
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₹200₹140-
Raakh – जितेन्द्र नाथ प्रेम नगर में एक के बाद एक होती हुई मौत की अबूझ पहेली के चक्रव्यूह में उलझा हुआ था इंस्पेक्टर रणवीर कालीरमण, जिसे सबूत के नाम पर हासिल थी सिर्फ ‘राख’ । एक ऐसी कहानी जिसमें मौत के नाच के बीच दबा था एक ऐसा अनसुलझा रहस्य जिसका अंदाजा किसी को भी नहीं था । जुर्म और सबूतों के बीच कशमकश की रोमांचक दास्तान ‘राख’
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₹150₹100-
Samay Seemant इसी विषम समाज में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते पात्रों की एक आत्मीय कथा है। चालिस-बयालीस वर्षों में ये स्थितियां काफी हद तक बदल जानी चाहिए थी। लेकिन ‘समय सीमांत’ का सच आज भी उसी तरह हमारे साथ चल रहा है जहां चंद मुठ्ठी भर लोग अथाह सम्पत्ति के स्वामी बन चुके हैं और नीचे के तबके की आधी जनसंख्या पहले से कहीं अधिक विपन्न और खस्ताहाल दिखाई देने लगी हैं। जनसंख्या के विस्फोट और कमरतोड़ महंगाई ने इस समस्या को और भी गम्भीर बना दिया हैं। समाज में फैली यह विषमता आज शहरों से लेकर गांव तक हर जगह दिखाई देने लगी है।
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₹897₹650-
बनारस टॉकीज- बनारस, बी एच यू, रोमांस, सपने, उम्मीदें और एक विस्फोट।
दिल्ली दरबार- राहुल और परिधि की प्रेम कहानी। एक छात्र की बिहार से दिल्ली तक की यात्रा या यूँ कहें कि एक बेफिक्र मस्तमौला के जिम्मेदार बनने की कथा।
चौरासी- शहर बोकारो। 1984 के सिक्ख दंगों की पृष्ठभूमि में रचा गया मार्मिक प्रेमाख्यान
बाग़ी बलिया- बलिया शहर की पृष्ठभूमि में छात्र राजनीति की लोमहर्षक दास्तां
उफ़्फ़ कोलकाता- हॉरर, कॉमेडी और रोमांस का लाजवाब कॉकटेल
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₹150₹110-
Trasadi – त्रासदी, कशिश क्रांति और कोरोना। यह किताब कोरोना काल में चल रही क्रांति के बीच पनपते प्रेम और प्रेम से उपजी कशिश को दर्शाती है।
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₹199₹130-
Uff Kolkata हिंदी भाषा की पहली हॉरर कॉमेडी कही जा सकती है। इस लिहाज़ से यह एक पहल भी है। कोलकाता के बाहरी भाग में फैले एक विश्वविद्यालय का हॉस्टल, उपन्यास के मुख्य किरदारों की ग़लती से अभिशप्त हो जाता है।
एक आत्मा जो अब हॉस्टल में है, बच्चों को परेशान करती है पर मारती नहीं। इन्हीं पसोपेश, डर, बचने के इंतज़ामात से जो हास्य उत्पन्न होता है, वही इस कहानी का मूल है।
कहानी ख़त्म होते-होते हतप्रभ कर देने वाला मोड़ लेती है, जिसके लिए आप सत्य व्यास और उनकी कहानियों को जानते हैं।
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₹185₹140-
वे आवारा दिन – रस्टी एक 16 वर्षीय एंग्लो-इंडियन लड़का है जो देहरादून में अपने अंग्रेज़ रिश्तेदारों के साथ रहता है। विद्रोही, मनमौजी, घुमक्कड़ और हमेशा नई जगहों की खोजबीन करने के लिए उतावला रस्टी अपने घर से भाग जाता है।
रास्ते में मिलता है किशन और दोनों मिलकर अनजाने रास्तों और मंज़िलों की ओर चल पड़ते हैं। चलते-चलते नए दोस्त और नए जोखिम भी मिलते हैं जो उन्हें ज़िंदगी की जटिल और उलझी सच्चाइयों को समझने में मददगार साबित होते हैं लेकिन इससे भी उनके आज़ाद और आवारा मन की गति नहीं थमती।
रस्किन बान्ड के क्लासिक उपन्यास ‘रूम ऑन द रूफ’ को आगे बढ़ाती हुई शरारती, साहसी और जोखिमभरे कारनामे करनेवाले रस्टी और उसके दोस्त किशन की मन को गुदगुदाने वाली कहानी है-वे आवारा दिन। 1992 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित रस्किन बान्ड भारत के एक बहुत ही लोकप्रिय लेखक हैं
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₹199₹120-
अक्टूबर जंक्शन दिव्य प्रकाश दुबे की चौथी किताब है जो बेस्ट seller रह चुकी है। इस किताब की प्रस्तावना में लिखा है – हमारे पर हर कहानी को सुनाने के दो वर्जन होते हैं, एक दूसरों को सुनाने के लिए और दूसरा खुद को समझाने के लिए। जिस दिन कहानी के दोनों वर्जन एक हो जाते हैं उस दिन लेखक अपनी किताब के पहले पन्ने पर लिख देता है – “इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं, इसका जीवित या मृत व्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है” ये एक अदना सा झूठ पूरी कहानी को सच्चा बना देता है।
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₹200₹125-
कभी लगता था कि लंबी यात्राओं के लिए मेरे पैरों को अभी कई और साल का संयम चाहिए। वह एक उम्र होगी जिसमें किसी लंबी यात्रा पर निकला जाएगा। इसलिए अब तक मैं छोटी यात्राएँ ही करता रहा था। यूँ किन्हीं छोटी यात्राओं के बीच मैं भटक गया था और मुझे लगने लगा था कि यह छोटी यात्रा मेरे भटकने की वजह से एक लंबी यात्रा में तब्दील हो सकती है। पर इस उत्सुकता के आते ही अगले मोड़ पर ही मुझे उस यात्रा के अंत का रास्ता मिल जाता और मैं फिर उपन्यास के बजाय एक कहानी लेकर घर आ जाता। हर कहानी, उपन्यास हो जाने का सपना अपने भीतर पाले रहती है। तभी इस महामारी ने सारे बाहर को रोक दिया और सारा भीतर बिखरने लगा। हम तैयार नहीं थे और किसी भी तरह की तैयारी काम नहीं आ रही थी। जब हमारे, एक तरीक़े के इंतज़ार ने दम तोड़ दिया और इस महामारी को हमने जीने का हिस्सा मान लिया तब मैंने ख़ुद को संयम के दरवाज़े के सामने खड़ा पाया। इस बार भटकने के सारे रास्ते बंद थे। इस बार छोटी यात्रा में लंबी यात्रा का छलावा भी नहीं था। इस बार भीतर घने जंगल का विस्तार था और उस जंगल में हिरन के दिखते रहने का सुख था। मैंने बिना झिझके संयम का दरवाज़ा खटखटाया और ‘अंतिमा’ ने अपने खंडहर का दरवाज़ा मेरे लिए खोल दिया।
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₹249₹199-
कौन है अँधेरों का संगतराश? क्या है उसकी बनाई मूर्तियों की खासियत? रहस्य और रोमांच से भरपूर एक पैरा नॉर्मल थ्रिलर।
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Kabhi Gaon Kabhi College | कभी गाँव कभी कॉलेज
₹199₹125Kabhi Gaon Kabhi College – ये कहानी है ऊँची दुकान के फ़ीके पकवानों की, बड़े-बड़े नाम वालों की, पर छोटे दर्शन वालों की। कहानी में जब-जब कॉलेज का ज्वार चढ़ता है, गाँव में आते ही भाटा सिर पर फूट जाता है।
कहानी के किरदार ऐसे कि प्रैक्टिकल होने के नाम पर ग़रीब आदमी की लंगोट भी खींच लें। कुछ कॉलेज के छात्र ऐसे हैं जिनकी जेबों तक से गाँव की मिट्टी की सुगंध आती है और कुछ ऐसे जो अच्छे शहरों की परवरिश से आकर इस ओखली में अपना सिर दे गए हैं।
कहानी के हर छात्र का सपना आईएएस/आईपीएस बनने का नहीं है, कोई सरपंच भी बनना चाहता है तो कोई कॉलेज ख़त्म होने के पहले ही ब्याह का प्लेसमेंट चाहता है।
कहानी में अर्श है और फ़र्श भी, आसमान भी है और खजूर भी। कहानी में गाँव में कॉलेज है या कॉलेज में गाँव, प्रेम जीतता है या पढ़ाई, दोस्ती जीतती है या लड़ाई– ये आपको तय करना है।
Pratyakshdarshi | प्रत्यक्षदर्शी
₹250₹165Pratyakshdarshi – यह उपन्यास सारी विपरीत स्थितियों के बीच अपनी जिजीविषा बनाए रखने वालों की आत्मीय कथा है। उपन्यास का समय-काल इस शहर के इतिहास का ऐसा दौर था जब यहां की मुख्य सड़कें पाताल रेल के गड्ढों और ज़मीन से खोदी गयी मिट्टी के पहाड़ों और उन कृत्रिम विपदाओं के बीच किसी तरह रास्ता बनाते आम नागरिकों से भरी थी; ‘लोडशेडिंग’ के चलते जहां रिहाइशी बस्तियों में घंटों या पहरों तक बिजली गायब रहती थी;
उमस के मारे भीड़ भरी प्राइवेट बसों, ट्रामों और नीची छत वाली मिनी बसों में लटककर सफर करना मुहाल था और हुगली नदी से सटा शहर का गोदी वाला इलाका अपनी तस्करी गतिविधियों के लिए कुख्यात हो चुका था। युवकों में बेरोज़गारी अपने चरम तक पहुंच चुकी थी।
जिस माझेरहाट (बीच के बाज़ार) का पुल अभी हाल ही में भरभराकर गिर गया, रेल पटरी के समानांतर उसके नीचे से गुज़रते हुए या उससे कुछ आगे ‘लेवेल क्रॉसिंग’ फाटक के खुलने का इंतज़ार करते हुए हमारा साबका हर रोज़ फेरीवालों के उस चमत्कृत संसार से होता था, जिसमें रुमालों, अंडरवियरों, अगरबत्तियों, फाउंटेन पेनों से लेकर ‘पुलपुल भाजा’ और बच्चों के खिलौनों तक कुछ भी खरीदा जा सकता था।
इन फेरीवालों में बहुत से पढ़े लिखे और शिक्षा प्राप्त नौजवान भी थे जो किसी ढंग की नौकरी की तलाश में धीरे-धीरे अधेड़ और फिर बूढ़े हो गए थे। ज़िंदगी की मामूली चीज़ों के लिए संघर्ष करते इन तमाम चेहरों के बीच यह शहर आज भी उतना ही खस्ताहाल, उतना ही विपन्न, मगर उतना ही जीवंत, उतना ही ज़ि़ंदा है, जितना आज से चालीस वर्ष पहले, सत्तर-अस्सी के उस संक्रमण काल में था।
samay Seemant | समय सीमांत
₹150₹100Samay Seemant इसी विषम समाज में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते पात्रों की एक आत्मीय कथा है। चालिस-बयालीस वर्षों में ये स्थितियां काफी हद तक बदल जानी चाहिए थी। लेकिन ‘समय सीमांत’ का सच आज भी उसी तरह हमारे साथ चल रहा है जहां चंद मुठ्ठी भर लोग अथाह सम्पत्ति के स्वामी बन चुके हैं और नीचे के तबके की आधी जनसंख्या पहले से कहीं अधिक विपन्न और खस्ताहाल दिखाई देने लगी हैं। जनसंख्या के विस्फोट और कमरतोड़ महंगाई ने इस समस्या को और भी गम्भीर बना दिया हैं। समाज में फैली यह विषमता आज शहरों से लेकर गांव तक हर जगह दिखाई देने लगी है।
Trasadi | त्रासदी
₹150₹110Trasadi – त्रासदी, कशिश क्रांति और कोरोना। यह किताब कोरोना काल में चल रही क्रांति के बीच पनपते प्रेम और प्रेम से उपजी कशिश को दर्शाती है।
Best Seller | बेस्ट सेलर
₹150₹110Best Seller – जीतने की जद्दोजहद में लोग क्या और कितना हार जाते हैं ये सफर के आखरी पड़ाव में और मंज़िल पर पहुँचने से पहले पता चल जाता है। लेकिन कुछ लोग इसे नजरअंदाज करना ही नियति बना लेते हैं।
Best seller की कहानी में सैकड़ों उतार चढ़ाव हैं।
उनके साथ फिर वही होता है जो सादिक के साथ हुआ।
आईना से प्यार और फिर शादी लेकिन इंटरनेशनल लेवल का Best seller बनने की उसकी ख्वाहिश अभी पूरी नहीं हो रही थी।
हिंदी ऑथर के लिए आसान है? आईना के पापा, प्रभात शेखावत खुद इंटरनेशनल बेस्टसेलर हैं तो फिर रास्ता आसान हो, शायद! शैलेष और अंशुल केसरी, पब्लिशिंग इंडस्ट्री के दो ऐसे दिग्गज जो किसी ऑथर का साथ दें, तो सब मुमकिन है।
फिर इनमें से कौन साथ देगा सादिक का? क्योंकि बेस्टसेलर बनना हर तरीके से फायदे का सौदा होता है! क्या ये कहानी वाकई सादिक की है या किसी ऐसे शख्स की है जिसने बेस्टसेलर बनने का सबसे अलग रास्ता चुना? पढ़िये और बताइए कि बेस्टसेलर कौन बना!
Baali – Yug Yugantar Pratishodh | बाली – युग युगांतर प्रतिशोध
₹390₹235Baali – एक भीषण आतंकवादी हमले के पश्चात कुछ निष्क्रिय संगठन पुन: सुप्तावस्था से बाहर आ गये और आरंभ हो गई भीषण नरसंहारो की एक अघोषित श्रृंखला जिसने देश के साथ-साथ सम्पूर्ण विश्व को हिला कर रख दिया।
इस Baali श्रृंखला से एक रहस्यमयी योद्धा ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई जिसकी जड़ें प्राचीन भारत की गाथाओं से जुड़ी हुई थी, वह जिस उद्देश के लिए प्रतिबद्ध था उसने समूचे विश्व की धारणाओं एवं इतिहास के साथ-साथ वर्तमान और भविष्य तक को बदल कर रख दिया।
सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग तक छिपा हुआ एक रहस्य, एक ऐसी शक्ति, जो सम्पूर्ण विश्व के साथ-साथ एक समूचे युग को परिवर्तित करने की क्षमता रखती थी। जातियों-प्रजातियों के मध्य अस्तित्व की महीन सीमा रेखा के मिथकों को जिसने बिखेर कर रख दिया।
Joker Ke Do Aagey Joker | जोकर के दो आगे जोकर
₹200₹140JOKER – जोकर के दो पीछे जोकर, बोलो कितने जोकर?” – इस पहेली के साथ जोकर ने एक बार फिर हिंदुस्तान की सरजमीं पर कदम रखे और पहुंचा मुंबई की सेंट्रल जेल के अंदर एक खास मिशन के लिये एक खास पार्टनर की तलाश में ।
Raakh: The Ash Trail | राख द ऐश ट्रैल
₹200₹140Raakh – जितेन्द्र नाथ प्रेम नगर में एक के बाद एक होती हुई मौत की अबूझ पहेली के चक्रव्यूह में उलझा हुआ था इंस्पेक्टर रणवीर कालीरमण, जिसे सबूत के नाम पर हासिल थी सिर्फ ‘राख’ । एक ऐसी कहानी जिसमें मौत के नाच के बीच दबा था एक ऐसा अनसुलझा रहस्य जिसका अंदाजा किसी को भी नहीं था । जुर्म और सबूतों के बीच कशमकश की रोमांचक दास्तान ‘राख’
Never Go Back | नेवर गो बैक
₹680₹380Never go back – एक मुश्किल सफर के बाद पूर्व मिलिट्री कॉप जैक रीचर वर्जीनिया पहुँचता है । उसकी मंजिल थी 110वीं मिलिट्री पुलिस जो उसकी पुरानी यूनिट का हेडक्वार्टर था और उसे अपने घर से भी ज्यादा अज़ीज़ था।
रीचर के पास यहाँ वापस आने की कोई खास वजह नहीं थी सिवाय इसके कि उसे नयी कमांडिंग ऑफिसर, मेजर सुज़न टर्नर की आवाज़ फोन पर काफी अच्छी लगी थी।
लेकिन वह जब तक यहाँ पहुँचा सुज़न गायब हो चुकी थी । उसे किसी भारी गड़बड़ की आशंका होने लगी । आगे जो हुआ उसकी रीचर ने उम्मीद नहीं की थी ।
सोलह साल पहले हुई हत्या के आरोप के बावजूद उसे दोबारा आर्मी जॉइन करने का मौका मिल रहा था । क्या रीचर को वापस आने का पछतावा होगा या किसी और को रीचर के वापस आने का ?
प्रस्तुत उपन्यास पर ‘नेवर गो बैक’ नामक हॉलीवुड मूवी बन चुकी है जिसमें टॉम क्रूज ने जैक रीचर का किरदार निभाया था।
Dhanika | धनिका
₹150₹110Dhanika – बच्चे को जन्म देते समय 206 हड्डियों के टूटने का दर्द सह लेने वाली औरत एक नाजुक ख्याल दरकने की पीड़ा क्यों बर्दाश्त नहीं कर पाती है? क्या रिश्ते निभाने का अर्थ रूहानी न होकर उम्मीदों और दुनियादारी की जिम्मेदारी का सही गणितीय संतुलन है?
ऐसे आदिम सवालों के जवाब तलाशने Dhanika, प्रेमा, अर्चना, -संजय और वासु के जीवन सफर पर चलिए ‘धनिका’ के साथ। ‘Dhanika’ कहानी उन रिश्तों की जो रह-रहकर पिछले 17 साल से मेरे जेहन में ख़दबद मचाए थे। उन चेहरों की जिन्हें मैं आखिरी साँस तक नहीं भूल सकती।
उन त्रासदियाँ की जिनकी नमी पलकों से आजीवन विदा नहीं ले सकती। उन्हें सांत्वना देने, दुलार भर थपकने की कोशिश है—Dhanika। दो साल पहले जब इसे लिखना शुरू किया था तो आधी-आधी रात तक बरसों पहले गुजर चुके वे आत्मीय पल, वो हृदय विदारक हादसे, वो बिछड़े हुए लोग, वो मधुर मुलाकातें सबने सिलसिलेवार हो धीरे-धीरे एक उपन्यास का रूप ले लिया।
सोचा नहीं था कि इन चरित्रों को विदा कर आपको सौंपते समय मन इतना लबालब हो जाएगा। हर चरित्र की अपनी मजबूरी। कौन सही, कौन गलत का निर्णय आप पर छोड़ा। अनगिनत काबिल लेखकों और असंख्य उम्दा किताबों के बीच इस उपन्यास की क्या महत्ता मुझे नहीं मालूम।
अब समय है ‘धनिका’ संग आपके शरीक होने का ‘तिवारी-सदन’ के आँगन की मध्यमवर्गीय पारिवारिक चर्चाओं में, शिवनाथ घाट किनारे दो युवा मन के बीच दुनिया से छिपकर किए उन वादों को सुनने का जिन पर हालात की गाज गिरने के बाद कोई मोल न बचा।
मंझधार में छूटे लोगों के संघर्ष और सफर को देखने का। डूबते हुए लोगों के तट पर पहुँच जाने के बाद की थकान को अपनी धमनियों में महसूस करने का। धनिका गूँज है हर इंसान के भीतर सहेजे खालीपन की।
आपको बस उसी तरह सौंप रही हूँ जैसे कार्तिक की सर्द सुबह घाट किनारे बैठकर छोड़ देते है वो बहती धार में जलता दीपक महज इस आस के साथ की मेरी आवाज़ पहुँचेगी वहाँ जहाँ इसे सुनने प्रतीक्षा की जा रही है। – Dhanika by Madhu Chaturvedi