ने जीत सिंह का कभी पीछा न छोड़ा।
इस बार बमय सामान एक पैसेंजर पकड़ा
तो मंजिल पर पहुँचकर पैसेंजर गायब हो गया।
सामान की वजह से थाने में हाजिरी भरनी पड़ी।
वहाँ सामान का भेद खुला तो प्राण कांप गए।
फिर उसके साथ बद् से बद्तर हुआ, बद्तरीन हुआ। ऐसा ही था जीत सिंह उर्फ जीता
जो कभी कुछ न जीता फिर भी नाम जीता
दुबई गैंग
टॉप मिस्ट्री राइटर सुरेन्द्र मोहन पाठक
का नवीनतम उपन्यास साहित्य विमर्श प्रकाशन
की गौरवशाली प्रस्तुति
सुरेन्द्र मोहन पाठक का जन्म 19 फरवरी, 1940 को पंजाब के खेमकरण में हुआ था। विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि हासिल करने के बाद उन्होंने भारतीय दूरभाष उद्योग में नौकरी कर ली। युवावस्था तक कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय लेखकों को पढ़ने के साथ उन्होंने मारियो पूजो और जेम्स हेडली चेज़ के उपन्यासों का अनुवाद शुरू किया। इसके बाद मौलिक लेखन करने लगे। सन 1959 में, आपकी अपनी कृति, प्रथम कहानी “57 साल पुराना आदमी” मनोहर कहानियां नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। आपका पहला उपन्यास “पुराने गुनाह नए गुनाहगार”, सन 1963 में “नीलम जासूस” नामक पत्रिका में छपा था। सुरेन्द्र मोहन पाठक के प्रसिद्ध उपन्यास असफल अभियान और खाली वार थे, जिन्होंने पाठक जी को प्रसिद्धि के सबसे ऊंचे शिखर पर पहुंचा दिया। इसके पश्चात उन्होंने अभी तक पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उनका पैंसठ लाख की डकैती नामक उपन्यास अंग्रेज़ी में भी छपा और उसकी लाखों प्रतियाँ बिकने की ख़बर चर्चा में रही। उनकी अब तक 313 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनका नवीनतम उपन्यास जीत सिंह सीरीज का ‘दुबई गैंग’ है। उनसे smpmysterywriter@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है। पत्राचार के लिये उनका पता है : पोस्ट बॉक्स नम्बर 9426, दिल्ली – 110051.
Weight
300 g
Dimensions
22 × 17 × 3 cm
फॉर्मैट
पेपरबैक
भाषा
हिंदी
Number of Pages
304
Q & A
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Actually I bought it as a gift for my father. I cannot review the book
Excellent novel with full pace …..Vimal kee yaad jarur aayi hai…beech beech me…
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Better but not the best
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extraordinary
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Good