हिन्दयुग्म प्रकाशन
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Deewar Mein Ek Khidki Rahti Thi | दीवार में एक खिड़की रहती थी
विनोद कुमार शुक्ल के इस उपन्यास में कोई महान घटना, कोई विराट संघर्ष, कोई युग-सत्य, कोई उद्देश्य या संदेश नहीं है क्योंकि इसमें वह जीवन, जो इस देश की वह ज़िंदगी है जिसे किसी अन्य उपयुक्त शब्द के अभाव में निम्न-मध्यवर्गीय कहा जाता है, इतने खालिस रूप में मौजूद है कि उन्हें किसी पिष्टकथ्य की ज़रूरत नहीं है। यहाँ खलनायक नहीं हैं किंतु मुख्य पात्रों के अस्तित्व की सादगी, उनकी निरीहता, उनके रहने, आने-जाने, जीवन-यापन के वे विरल ब्यौरे हैं जिनसे अपने-आप उस क्रूर प्रतिसंसार का एहसास हो जाता है जिसके कारण इस देश के बहुसंख्य लोगों का जीवन वैसा है जैसा कि है। विनोद कुमार शुक्ल इस जीवन में बहुत गहरे पैठकर दाम्पत्य, परिवार, आस-पड़ोस, काम करने की जगह, स्नेहिल ग़ैर-संबंधियों के साथ रिश्तों के ज़रिए एक इतनी अदम्य आस्था स्थापित करते हैं कि उसके आगे सारी अनुपस्थित मानव-विरोधी ताक़तें कुरूप ही नहीं, खोखली लगने लगती हैं। एक सुखदतम अचंभा यह है कि इस उपन्यास में अपने जल, चट्टान, पर्वत, वन, वृक्ष, पशुओं, पक्षियों, सूर्योदय, सूर्यास्त, चंद्र, हवा, रंग, गंध और ध्वनियों के साथ प्रकृति इतनी उपस्थित है जितनी फणीश्वरनाथ रेणु के गल्प के बाद कभी नहीं रही और जो यह समझते थे कि विनोद कुमार शुक्ल में मानव-स्नेहिलता कितनी भी हो, स्त्री-पुरुष प्रेम से वे परहेज़ करते हैं या क्योंकि वह उनके बूते से बाहर है, उनके लिए तो यह उपन्यास एक सदमा साबित होगा–प्रदर्शनवाद से बचते हुए इसमें उन्होंने ऐंद्रिकता, माँसलता, रति और शृंगार के ऐसे चित्र दिए हैं जो बग़ैर उत्तेजक हुए आत्मा को इस आदिम संबंध के सौंदर्य से समृद्ध कर देते हैं, और वे चस्पाँ किए हुए नहीं हैं बल्कि नितांत स्वाभाविक हैं–उनके बिना यह उपन्यास अधूरा, अविश्वसनीय, वंध्य होता। बल्कि आश्चर्य यह है कि उनकी कविता में यह शारीरिकता नहीं है।
-विष्णु खरे
1 जनवरी 1937 के दिन राजनांदगाँव (मध्य प्रदेश) में जन्में श्री विनोद कुमार शुक्ल का पहला कविता-संग्रह ‘लगभग जयहिन्द’ श्री अशोक वाजपेयी द्वारा सम्पादित ‘पहचान’ सीरीज के अन्तर्गत 1971 में प्रकाशित हुआ था। उनका दूसरा कविता-संग्रह ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’ सम्भावना प्रकाशन से 1981 में और वहीं से उनका पहला उपन्यास ‘नौकर की कमीज़’
1979 में छपा। 1988 में पूर्वग्रह सीरीज में उनकी कहानियों का संग्रह ‘पेड़ पर कमरा’ प्रकाशित हुआ। उनकी कुछ रचनाओं का मराठी, उर्दू, मलयालम, अंग्रेज़ी और जर्मन भाषाओं में अनुवाद हुआ। उन्हें मध्य प्रदेश शासन की ‘गजानन माधव मुक्तिबोध फ़ैलोशिप’ 1975-76 में, दूसरे कविता-संग्रह के लिए मध्यप्रदेश कला परिषद का ‘वीरसिंह देव पुरस्कार’तथा उड़ीसा की वर्णमाला संस्था द्वारा ‘सृजनभारती सम्मान’, सन 1992 में, ‘सब-कुछ होना बचा रहेगा’ कविता-संग्रह पर सन 1992 में ‘रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार’ एवं ‘भवानी प्रसाद मिश्र पुरस्कार’ फिर 1995 में मध्य प्रदेश शासन का ‘शिखर सम्मान’ प्राप्त हुआ। 1996 में विनोद कुमार शुक्ल को ‘मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रीय सम्मान’ देकर सम्मानित किया गया। शुक्ल जी दो वर्ष के लिए (जून 1994 से जून 1996 तक)’निराला सृजन पीठ’ में अतिथि साहित्यकार रहे। ‘निराला सृजन पीठ’ में रहते हुए इन्होंने ‘खिलेगा तो देखेंगे’ तथा ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ नामक दो उपन्यास लिखे। वे इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफ़ेसर रहे तथा दिसम्बर 1996 में सेवानिवृत्त हुए।
Weight | 200 g |
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Dimensions | 20 × 13 × 2 cm |
फॉर्मैट | पेपरबैक |
भाषा | हिंदी |
Number of Pages | 243 |
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