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साहित्य विमर्श : पुस्तक सूची
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₹3912₹2499-
Hindi Books Published in 2021
जाते हुए वर्ष को सलाम और आने वाले वर्ष को सलाम.
साहित्य विमर्श लाया है पाठकों के लिए शानदार ऑफर.
वर्ष 2022 का स्वागत करिए साहित्य विमर्श प्रकाशन की पुस्तकों से जो आपको निम्न दरों में पहुँचाया जा रहा है.
साहित्य विमर्श प्रकाशन द्वारा वर्ष 2021 में प्रकाशित 20 पुस्तकों का बंडल आपको मात्र 2499 रूपये में, फ्री डिलीवरी के साथ प्राप्त होगा.
पुस्तकों के शीर्षक, लेखकों के नाम एवं अधिकतम खुदरा मूल्य के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने के लिए आप More Info पर क्लिक करें।क्रम संख्या पुस्तक शीर्षक लेखक का नाम विधा अधिकतम मूल्य 1 छाप तिलक सब छीनी सुनीता सिंह लघु कथा संग्रह, स्त्री विमर्श, स्त्री-केंद्रित 149 2 इन्द्रप्रिया सुधीर मौर्य एतिहासिक उपन्यास 149 3 बात बनेचर सुनील कुमार ‘सिंक्रेटिक कथा संग्रह, जंगल लोर, जंगली-जीवों की कहानियां 249 4 ऐट राजीव रोशन अपराध कथा 299 5 राइट टाइम टू किल संतोष पाठक अपराध कथा 299 6 प्रतिघात संतोष पाठक अपराध कथा 299 7 द वाचमैन : मर्डर इन रूम नंबर 108 संतोष पाठक अपराध कथा 299 8 स्वाहा (खंड 1) संतोष पाठक अपराध कथा 249 9 अग्निपाखी डॉ. अंशु जोशी लघु कथा संग्रह, मॉडर्न स्त्री विमर्श 149 10 निम्फोमेनियाक सुरेंद्र मोहन पाठक अपराध कथा 165 11 तलाश विनय प्रकाश तिर्की यात्रा संस्मरण एवं आदिवासी संस्कृति 199 12 स्वाहा (खंड 2) संतोष पाठक अपराध कथा 299 13 स्वाहा (खंड 3) संतोष पाठक अपराध कथा 219 14 संभल ऐ दिल हेमा बिष्ट रोमांटिक 149 15 तुम तक हेमा बिष्ट रोमांटिक 149 16 कुबड़ी बुढिया की हवेली सुरेंद्र मोहन पाठक बाल साहित्य, बाल उपन्यास, एडवेंचर्स 109 17 बेताल और शहजादी सुरेंद्र मोहन पाठक बाल साहित्य, बाल उपन्यास, एडवेंचर्स 109 18 किस्सों की पोटली दीप्ति मित्तल बाल साहित्य, बाल कथा संग्रह 115 19 आदी पादी दादी समीर गाँगुली बाल साहित्य, बाल कथा संग्रह, गर्ल पॉवर 109 20 चाँद का पहाड़ बिभूतिभूषण बंदोपाध्याय बाल साहित्य, बाल उपन्यास, एडवेंचर्स 149
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₹499₹399 -
₹670₹500 -
₹299₹200-
‘Allahabad Diary – एक ग़ैर मामूली दास्तान’
हिंदी माध्यम के छात्रों की संघर्ष गाथा है जो सिविल सेवा परीक्षा पास करके आईएएस बनना चाहते हैं। इसी कथा के समानांतर एक दूसरी कथा एक कम उम्र की विधवा शांति की है जिसका बेटा उसे छोड़कर विदेश चला जाता है।
वैधव्य की पीड़ा, पुत्र का देश छोड़कर चले जाना और अकेलेपन की त्रासदी के बीच यह नारी पात्र आज की पीढ़ी पर वर्तमान समाज के परिप्रेक्ष्य में कई मौलिक प्रश्न खड़े करता है।
कहानी पढ़ते समय यह आभास होता है कि यह कथा न केवल समाज में अपना स्थान बनाने की ख़्वाहिश रखने वाले कुछ नवयुवकों की है बल्कि इसमें दो परिस्थितिजन्य पीड़ा से ग्रसित महिलाओं की संघर्ष गाथा भी है।
अनुराग का संघर्ष कहानी में बारीकी से चित्रित किया गया है। इस पात्र का चरित्र उदात्त चरित्र नहीं है।
अपने जीवन के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए वह झूठ-फरेब सब करने को तैयार है। इसकी एक ही नैतिकता है- विजय, चाहे वह किसी के ध्वंस पर ही क्यों न हो। कहानी में हिंदी माध्यम के अन्य पात्र Allahabad (वर्तमान का प्रयागराज) के हिंदी माध्यम छात्र-जीवन को पूरी तरह संदर्भित करते हैं
इस परीक्षा में अँग्रेज़ी के प्रभाव और मातृभाषा के अपमान पर कई अनुत्तरित प्रश्न पर उठाते हैं।
उर्मिला का संघर्ष, शांति की पीड़ा, हिंदी माध्यम के छात्रों की अँग्रेज़ी न जानने की विवशता के मध्य एक संकल्प इन निम्न मध्यवर्गीय छात्रों का कि मैं जन्मा हूँ एक ग़ैर मामूली दास्तान के लिए, कथानक का केंद्र बिंदु है।
Allahabad University, यूनिवर्सिटी रोड, Allahabad के छोटे-छोटे मुहल्ले इस कथानक में दिखाए गए हैं।
कई पात्र इस कहानी के सजीव हैं जिनको आम जीवन से उठाया गया है। अगर ऐसा कहा जाए कि इस कहानी के पात्र कुछ अलग नाम और क़द-काठी के साथ आज भी Allahabad के छात्रावासों और डेलीगेसियों में साँसें ले रहे तो शायद यह अतिशयोक्ति न होगी।
यह भावना के धरातल पर लिखा गया उपन्यास है जिसमें भावनाएँ अक्सर प्रधान हो जाती हैं और पात्रों से अधिक पात्रों की भावनाएँ मस्तिष्क को प्रभावित करने लगती हैं।
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₹300₹190-
Andekhe Pahad – नीरज मुसाफिर स्वभाव से घुमक्कड़ हैं। इन्हें देश के सुदूर और दुर्गम स्थानों पर यात्रा करने और अपने यात्रा-अनुभवों को लिपिबद्ध करने का शौक है। प्रस्तुत पुस्तक “अनदेखे पहाड़” नीरज मुसाफिर की 5वीं पुस्तक है।
इसमें इन्होंने उत्तराखंड के पहाड़ों में विभिन्न साहसिक यात्राओं व ट्रैकिंग के अनुभव लिखे हैं।
1. केदारनाथ (अप्रैल 2011), 2. पिंडारी ग्लेशियर (अक्टूबर 2011), 3. गौमुख-तपोवन (जून 2012), 4. रूपकुंड (अक्टूबर 2012), 5. हर की दून (अक्टूबर 2013), 6. डोडीताल (अप्रैल 2015), 7. रुद्रनाथ (सितंबर 2015), 8. नागटिब्बा (दिसंबर 2015), 9. पंचचूली बेसकैंप (जून 2017), 10. फूलों की घाटी व हेमकुंड साहिब (जुलाई 2017), 11. पँवालीकांठा बुग्याल (सितंबर 2017), 12. चौमासी के रास्ते केदारनाथ (अगस्त 2019
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₹390₹235-
Baali – एक भीषण आतंकवादी हमले के पश्चात कुछ निष्क्रिय संगठन पुन: सुप्तावस्था से बाहर आ गये और आरंभ हो गई भीषण नरसंहारो की एक अघोषित श्रृंखला जिसने देश के साथ-साथ सम्पूर्ण विश्व को हिला कर रख दिया।
इस Baali श्रृंखला से एक रहस्यमयी योद्धा ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई जिसकी जड़ें प्राचीन भारत की गाथाओं से जुड़ी हुई थी, वह जिस उद्देश के लिए प्रतिबद्ध था उसने समूचे विश्व की धारणाओं एवं इतिहास के साथ-साथ वर्तमान और भविष्य तक को बदल कर रख दिया।
सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग तक छिपा हुआ एक रहस्य, एक ऐसी शक्ति, जो सम्पूर्ण विश्व के साथ-साथ एक समूचे युग को परिवर्तित करने की क्षमता रखती थी। जातियों-प्रजातियों के मध्य अस्तित्व की महीन सीमा रेखा के मिथकों को जिसने बिखेर कर रख दिया।
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₹175₹125-
स्त्रियाँ जो मिटाना चाहती हैं अपने माथे पर लिखी मूर्खता किताबों में उनके नाम दर्ज चुटकुलों, और इस चलन को भी जो कहता है, ‘‘यह तुम्हारे मतलब की बात नहीं’’ मगर सिमट जाती हैं मिटाने में कपड़ों पर लगे दाग, चेहरों पर लगे दाग, और चुनरी में लगे दागों को, स्त्रियाँ, जो होना चाहती हैं खड़ी चैपालों, पान ठेलों और चाय की गुमटियों पर करना चाहती है
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₹175₹120-
Behaya – हमारे देश में शादी और प्यार पर फिल्मों की बड़ी छाप है। लेकिन असल ज़िन्दगी सुनहरे परदे की कहानियों से बहुत अलग होती है।
कई बार राम-रावण अलग-अलग नहीं होते बल्कि वक़्त और हालात के साथ एक ही व्यक्ति किरदार बदलता रहता है।
‘Behaya’ कहानी है सिया और यश की कामयाब और खूबसूरत ज़िन्दगी की। यह कहानी है रूढ़िवादी सोच से उपजे शक़ और बंधनों की। यह कहानी है उत्पीड़न और डर के साये में जीने वाले मुस्कुराते और कामयाब चेहरों की।
यह कहानी है समाज के सामने सशक्त दिखने वालों की मजबूरी और उदारता का जामा ओढ़े हैवानों की भी।
बार-बार कहने पर, देखने पर भी जो बातें जीवनसाथी नहीं समझ पाते; कैसे वही दर्द और टीस एक अनजान व्यक्ति बस आवाज़ सुनकर समझ जाता है? कैसे मुस्कुराते चेहरे के पीछे की उदासी को वह पल भर में भाँप लेता है?
आत्माओं के कनेक्शन से उपजे कुछ खूबसूरत रिश्ते समाज के बंधनों से परे होते हैं। ‘बेहया’ कहानी है सिया और अभिज्ञान के इसी अनकहे, अनजान और अनगढ़े रिश्ते की।
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₹150₹110-
Best Seller – जीतने की जद्दोजहद में लोग क्या और कितना हार जाते हैं ये सफर के आखरी पड़ाव में और मंज़िल पर पहुँचने से पहले पता चल जाता है। लेकिन कुछ लोग इसे नजरअंदाज करना ही नियति बना लेते हैं।
Best seller की कहानी में सैकड़ों उतार चढ़ाव हैं।
उनके साथ फिर वही होता है जो सादिक के साथ हुआ।
आईना से प्यार और फिर शादी लेकिन इंटरनेशनल लेवल का Best seller बनने की उसकी ख्वाहिश अभी पूरी नहीं हो रही थी।
हिंदी ऑथर के लिए आसान है? आईना के पापा, प्रभात शेखावत खुद इंटरनेशनल बेस्टसेलर हैं तो फिर रास्ता आसान हो, शायद! शैलेष और अंशुल केसरी, पब्लिशिंग इंडस्ट्री के दो ऐसे दिग्गज जो किसी ऑथर का साथ दें, तो सब मुमकिन है।
फिर इनमें से कौन साथ देगा सादिक का? क्योंकि बेस्टसेलर बनना हर तरीके से फायदे का सौदा होता है! क्या ये कहानी वाकई सादिक की है या किसी ऐसे शख्स की है जिसने बेस्टसेलर बनने का सबसे अलग रास्ता चुना? पढ़िये और बताइए कि बेस्टसेलर कौन बना!
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₹70₹50-
Billi Aur Moosarani बाल कथा साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। शिवानी (17 अक्तूबर 1923-21 मार्च 2003) हिन्दी की जानी-मानी लेखिका हैं। उनका पूरा नाम था गौरा पंत। उन्होंने अपने जीवनकाल में अनेक उपन्यास, कहानियां और यात्रा-वृत्तांत लिखे। हिन्दी साहित्य में उनके योगदान के लिए 1982 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया। बच्चों के लिए ‘सूखा गुलाब’, ‘स्वामीभक्त चूहा’, ‘राधिका सुन्दरी’, ‘बिल्ली और मूसारानी’ उनकी लोकप्रिय पुस्तकें हैं
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₹840₹499-
Children Fiction Books (Hindi)
1. बात बनेचर- सुनील कुमार सिंक्रेटिक रचित आधुनिक पंचतंत्र
2. चाँद का पहाड़- बिभूति भूषण बंद्योपाध्याय के बांग्ला उपन्यास का हिंदी अनुवाद
3. कुबड़ी बुढ़िया की हवेली- सुरेन्द्र मोहन पाठक रचित दुर्लभ बाल उपन्यास
4. बेताल और शहजादी- सुरेन्द्र मोहन पाठक रचित दुर्लभ बाल उपन्यास
5. आदी पादी दादी- समीर गांगुली रचित बाल कहानियों का संग्रह, जिसकी कहानियों के केंद्र में लड़कियाँ हैं।
6. पोटली किस्से कहानियों की- दीप्ति मित्तल की बाल कहानियों का संग्रह
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₹767
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स्वाहा-1
साजिश के हवन कुंड में आहुतियाँ डाली जा रही थीं, लपटें निरंतर उग्र रूप लेती जा रही थीं, सब कुछ जल्दी ही स्वाहा हो जाने वाला था। अफसोस कि किसी को उस बात की भनक तक नहीं थी।
एक लॉ ग्रेजुएट लड़की के कत्ल से शुरू हुई ऐसी हौलनाक दास्तान, जिसे हत्यारे ने अपने तेज दिमाग के इस्तेमाल से बुरी तरह उलझा कर रख दिया। नतीजा ये हुआ कि हत्या की एक वारदात धीरे-धीरे अपराध की महागाथा में परिवर्तित होती चली गई।
स्वाहा-2
श्यामली के कत्ल से शुरू हुई सिद्धांत की बद्किस्मती उसका पीछा छोड़ने को तैयार नहीं थी। दिल के भीतर दहकती बदले की आग उसके जुर्म की फेहरिश्त में निरंतर इजाफा करती जा रही थी।
वह भटक रहा था, एक-एक कर के दुश्मनों का सफाया करता जा रहा था, मगर जब मंजिल पर पहुँचा तो ये देखकर हैरान रह गया कि प्रतिशोध के दावानल को बुझाने हेतु जितने भी गुनाह किये थे उनका हासिल एक ही झटके में जलकर स्वाहा हो गया।
स्वाहा-3
जिसे चाहा उसे खो दिया। जहां भी कदम पड़े तबाही और बर्बादी का मंजर आम हो गया। इंसानियत हैवानियत में बदल गई, सबकुछ एक ही झटके में स्वाहा हो गया।
अपने प्रारब्ध से जूझता ऐसा बदकिस्मत शख्स दुनिया में बस एक ही हो सकता था और वह था सिद्धांत सूर्यवंशी। जो एक ऐसे रास्ते पर चल पड़ा था जिसकी कोई मंजिल नहीं थी।
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₹160₹120-
December Sanjog – प्रस्तुत संग्रह में प्यार के ताने-बानों के साथ जीवन की कड़वी मीठी सच्चाइयाँ भी अनायास ही बुनी गई हैं। जीवन के मिले-जुले अनुभवों को, शब्दों के जाल में समेट लेना, संजो लेना, मन को कहीं न कहीं तसल्ली देता है।
“आखर ढाई” एक ऐसी युवती की कहानी है जो सच्चे प्रेम की तलाश में आजीवन भटकती रहती है। अंततः उसे उसका सच्चा प्यार मिलता है लेकिन क्या सच में ये उसका अंतिम प्यार है?
ऐसे ही “उस रात की बात” का कथानक सिहरन पैदा करने वाला है, तब भी रत्ती बुआ की कहानी एक सत्य घटना से प्रेरित है। “पंखुरी-पंखुरी हरसिंगार” की कमसिन-कोमलांगी नायिका समय और परिस्थितियों के साथ एक सशक्त स्त्री बनती है और अपने निर्णय स्वयं लेने में सक्षम रहती
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₹150₹110-
Dhanika – बच्चे को जन्म देते समय 206 हड्डियों के टूटने का दर्द सह लेने वाली औरत एक नाजुक ख्याल दरकने की पीड़ा क्यों बर्दाश्त नहीं कर पाती है? क्या रिश्ते निभाने का अर्थ रूहानी न होकर उम्मीदों और दुनियादारी की जिम्मेदारी का सही गणितीय संतुलन है?
ऐसे आदिम सवालों के जवाब तलाशने Dhanika, प्रेमा, अर्चना, -संजय और वासु के जीवन सफर पर चलिए ‘धनिका’ के साथ। ‘Dhanika’ कहानी उन रिश्तों की जो रह-रहकर पिछले 17 साल से मेरे जेहन में ख़दबद मचाए थे। उन चेहरों की जिन्हें मैं आखिरी साँस तक नहीं भूल सकती।
उन त्रासदियाँ की जिनकी नमी पलकों से आजीवन विदा नहीं ले सकती। उन्हें सांत्वना देने, दुलार भर थपकने की कोशिश है—Dhanika। दो साल पहले जब इसे लिखना शुरू किया था तो आधी-आधी रात तक बरसों पहले गुजर चुके वे आत्मीय पल, वो हृदय विदारक हादसे, वो बिछड़े हुए लोग, वो मधुर मुलाकातें सबने सिलसिलेवार हो धीरे-धीरे एक उपन्यास का रूप ले लिया।
सोचा नहीं था कि इन चरित्रों को विदा कर आपको सौंपते समय मन इतना लबालब हो जाएगा। हर चरित्र की अपनी मजबूरी। कौन सही, कौन गलत का निर्णय आप पर छोड़ा। अनगिनत काबिल लेखकों और असंख्य उम्दा किताबों के बीच इस उपन्यास की क्या महत्ता मुझे नहीं मालूम।
अब समय है ‘धनिका’ संग आपके शरीक होने का ‘तिवारी-सदन’ के आँगन की मध्यमवर्गीय पारिवारिक चर्चाओं में, शिवनाथ घाट किनारे दो युवा मन के बीच दुनिया से छिपकर किए उन वादों को सुनने का जिन पर हालात की गाज गिरने के बाद कोई मोल न बचा।
मंझधार में छूटे लोगों के संघर्ष और सफर को देखने का। डूबते हुए लोगों के तट पर पहुँच जाने के बाद की थकान को अपनी धमनियों में महसूस करने का। धनिका गूँज है हर इंसान के भीतर सहेजे खालीपन की।
आपको बस उसी तरह सौंप रही हूँ जैसे कार्तिक की सर्द सुबह घाट किनारे बैठकर छोड़ देते है वो बहती धार में जलता दीपक महज इस आस के साथ की मेरी आवाज़ पहुँचेगी वहाँ जहाँ इसे सुनने प्रतीक्षा की जा रही है। – Dhanika by Madhu Chaturvedi
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₹295₹200-
Ek Desh barah Duniya – ‘‘जब मुख्यधारा की मीडिया में अदृश्य संकटग्रस्त क्षेत्रों की ज़मीनी सच्चाई वाले रिपोर्ताज लगभग गायब हो गए हैं तब इस पुस्तक का सम्बन्ध एक बड़ी जनसंख्या को छूते देश के इलाकों से है जिसमें शिरीष खरे ने विशेषकर गाँवों की त्रासदी, उम्मीद और उथल-पुथल की परत-दर-परत पड़ताल की है।’’ -हर्ष मंदर, सामाजिक कार्यकर्ता व लेखक ‘‘यह देश-देहात के मौजूदा और भावी संकटों से संबंधित नया तथा ज़रूरी दस्तावेज़ है।’’ आनंद पटवर्धन, डॉक्युमेंट्री फिल्मकार
‘‘इक्कीसवीं सदी के मेट्रो-बुलेट ट्रेन के भारत में विभिन्न प्रदेशों के वंचित जनों की ज़िन्दगियों के किस्से एक बिलकुल दूसरे ही हिन्दुस्तान को पेश करते हैं, हिन्दुस्तान जो स्थिर है, गतिहीन है और बिलकुल ठहरा हुआ है।’’ -रामशरण जोशी,
वरिष्ठ पत्रकार पिछले दो दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय शिरीष खरे वंचित और पीड़ित समुदायों के पक्ष में लिखते रहे हैं। राजस्थान पत्रिका और तहलका में कार्य करते हुए इनकी करीब एक हज़ार रिपोर्ट प्रकाशित हुई हैं। भारतीय गाँवों पर उत्कृष्ट रिपोर्टिंग के लिए वर्ष 2013 में ‘भारतीय प्रेस परिषद’ और वर्ष 2009, 2013 और 2020 में ‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष’ द्वारा लैंगिक संवेदनशीलता पर स्टोरीज़ के लिए ‘लाडली मीडिया अवार्ड’ सहित सात राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से सम्मानित शिरीष खरे की अभी तक दो पुस्तकें ‘तहक़ीकात’ और ‘उम्मीद की पाठशाला’ प्रकाशित हो चुकी हैं।
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₹125₹100-
Ghar Wapsi – घर वापसी उन विस्थापित लोगों की कहानी है जो बेहतर भविष्य के लक्ष्य का पीछा करते हुए, अपने समाज से दूर होने के बावजूद, वहाँ से पूरी तरह निकल नहीं पाते। यह कहानी बिहार-उत्तर प्रदेश आदि के गाँवों, छोटे शहरों से शिक्षा और नौकरी की तलाश में निकले युवाओं के आंतरिक और बाह्य संघर्ष की कहानी है। अपने जड़ों की एक चिंता से जूझते हुए कि मगर वो वहीं होते, तो शायद कुछ बदलाव ले आते। एक अंतर्द्वंद्व कि अपने नए परिवार, जिसमें पत्नी-बच्चे और उनका भविष्य है, को ताकूँ, या पुराने परिवार को, जिसमें माँ-बाप से लेकर समाज की भी एक वृहद् भूमिका होती है, लगातार चलता रहता है। समाज भी एक परिवार होता है, वो भी एक माँ-बाप का जोड़ा है जो आप में निवेश करता है। ‘मुझे क्या बनना है‘ के उत्तर का पीछा करते हुए मुख्य पात्र आज के समय में एक बेहतर स्थिति में ज़रूर है लेकिन वो परिस्थितिजन्य ‘बेहतरी‘ है। रिश्तों की गहराई और संवेदनाओं के एक वेग में घर वापसी के पात्र बहते हैं। पिता-पुत्र, पति-पत्नी, अल्पवयस्क प्रेमी-प्रेमिका, दोस्ती जैसे वैयक्तिक रिश्तों से लेकर समाज और व्यक्ति के आपसी रिश्तों की कहानी है घर वापसी। कहानी के मुख्य पात्र रवि के अवचेतन में उसी का एक हिस्सा नोचता है, खरोंचता है, चिल्लाता है.. लेकिन उसके चेतन का विस्तार, उसके वर्तमान की चमक उस छटपटाहट को बेआवाज़ बनाकर दबा देते हैं। रवि अपनी अपूर्णताओं को जीते हुए, उनसे लड़ते हुए, बचपन में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर का पीछा करता रहता है कि उसे क्या बनना है। अपने वर्तमान में सामाजिक दृष्टि से ‘सफल‘ रवि का अपने अवचेतन के सामने आने पर, खुद को लंबे रास्ते के दो छोरों को तौलते हुए पाना, और तय करना कि घर लौटूँ, या घर को लौट जाऊँ, ही घर वापसी की आत्मा है।
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₹225₹170-
Goli – ‘‘मैं जन्मजात अभागिनी हूँ। स्त्री जाति का कलंक हूँ। परन्तु मैं निर्दोष हूँ, निष्पाप हूँ। मेरा दुर्भाग्य मेरा अपना नहीं है, मेरी जाति का है, जाति-परम्परा का है; हम पैदा ही इसलिए होते हैं कि कलंकित जीवन व्यतीत करें।
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₹199₹189-
अनुपम सौन्दर्य की मालकिन अनुपमा। जब इस अनुपम सौन्दर्य की जुगलबंदी उसके खतरनाक दिमाग से हुई तो जैसे कहर बरपा हो गया। क्या कोई उसके जादू से बच पाया?
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350/- ONLY
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Jankipul के संस्थापक प्रभात रंजन की किताब X Y Ka Z एक कहानी संग्रह है। पंकज सुबीर जी इसके बारे में लिखते हैं कि “कुछ अलग तरह का गद्य पढ़ने की खोज में लगे पाठकों की तलाश जिन लेखकों पर जाकर समाप्त होती है, उनमें एक नाम प्रभात रंजन है। कहानी और संस्मरण के बीच आवाजाही करता यह लेखक अपने पाठक को अपनी शैली के प्रवाह और भाषा की रवानगी के साथ बहाए ले जाता हैं।
“jankipul” यह नाम जैसे प्रभात रंजन का ही अब दुसरा नाम हो चुका है”
Nymphomaniac सुरेन्द्र मोहन पाठक का बहुचर्चित उपन्यास है। यह पहली बार 1984 में प्रकाशित हुआ था। यह सुधीर सीरीज़ का उपन्यास है। सुरेन्द्र मोहन पाठक जी भी jankipul व प्रभात रंजन जी से भली भांति परिचित हैं। सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के साक्षात्कार आप jankipul पर पढ़ सकते हैं।
कहानियों के दस्तखत गौरव कुमार निगम का कहानी संग्रह है। यह कहानी संग्रह बहुत विविध है। इसमें हर प्रकार की कहानियाँ हैं जो आपके अंदर रोमांच भी भर सकती हैं और अगले ही पल आपकी आँखों में आँसू लाने का भी दम रखती हैं।
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₹200₹140-
JOKER – जोकर के दो पीछे जोकर, बोलो कितने जोकर?” – इस पहेली के साथ जोकर ने एक बार फिर हिंदुस्तान की सरजमीं पर कदम रखे और पहुंचा मुंबई की सेंट्रल जेल के अंदर एक खास मिशन के लिये एक खास पार्टनर की तलाश में ।
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Kabhi Gaon Kabhi College | कभी गाँव कभी कॉलेज
₹199₹125Kabhi Gaon Kabhi College – ये कहानी है ऊँची दुकान के फ़ीके पकवानों की, बड़े-बड़े नाम वालों की, पर छोटे दर्शन वालों की। कहानी में जब-जब कॉलेज का ज्वार चढ़ता है, गाँव में आते ही भाटा सिर पर फूट जाता है।
कहानी के किरदार ऐसे कि प्रैक्टिकल होने के नाम पर ग़रीब आदमी की लंगोट भी खींच लें। कुछ कॉलेज के छात्र ऐसे हैं जिनकी जेबों तक से गाँव की मिट्टी की सुगंध आती है और कुछ ऐसे जो अच्छे शहरों की परवरिश से आकर इस ओखली में अपना सिर दे गए हैं।
कहानी के हर छात्र का सपना आईएएस/आईपीएस बनने का नहीं है, कोई सरपंच भी बनना चाहता है तो कोई कॉलेज ख़त्म होने के पहले ही ब्याह का प्लेसमेंट चाहता है।
कहानी में अर्श है और फ़र्श भी, आसमान भी है और खजूर भी। कहानी में गाँव में कॉलेज है या कॉलेज में गाँव, प्रेम जीतता है या पढ़ाई, दोस्ती जीतती है या लड़ाई– ये आपको तय करना है।
Ek Desh Barah Duniya | एक देश बारह दुनिया
₹295₹200Ek Desh barah Duniya – ‘‘जब मुख्यधारा की मीडिया में अदृश्य संकटग्रस्त क्षेत्रों की ज़मीनी सच्चाई वाले रिपोर्ताज लगभग गायब हो गए हैं तब इस पुस्तक का सम्बन्ध एक बड़ी जनसंख्या को छूते देश के इलाकों से है जिसमें शिरीष खरे ने विशेषकर गाँवों की त्रासदी, उम्मीद और उथल-पुथल की परत-दर-परत पड़ताल की है।’’ -हर्ष मंदर, सामाजिक कार्यकर्ता व लेखक ‘‘यह देश-देहात के मौजूदा और भावी संकटों से संबंधित नया तथा ज़रूरी दस्तावेज़ है।’’ आनंद पटवर्धन, डॉक्युमेंट्री फिल्मकार
‘‘इक्कीसवीं सदी के मेट्रो-बुलेट ट्रेन के भारत में विभिन्न प्रदेशों के वंचित जनों की ज़िन्दगियों के किस्से एक बिलकुल दूसरे ही हिन्दुस्तान को पेश करते हैं, हिन्दुस्तान जो स्थिर है, गतिहीन है और बिलकुल ठहरा हुआ है।’’ -रामशरण जोशी,
वरिष्ठ पत्रकार पिछले दो दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय शिरीष खरे वंचित और पीड़ित समुदायों के पक्ष में लिखते रहे हैं। राजस्थान पत्रिका और तहलका में कार्य करते हुए इनकी करीब एक हज़ार रिपोर्ट प्रकाशित हुई हैं। भारतीय गाँवों पर उत्कृष्ट रिपोर्टिंग के लिए वर्ष 2013 में ‘भारतीय प्रेस परिषद’ और वर्ष 2009, 2013 और 2020 में ‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष’ द्वारा लैंगिक संवेदनशीलता पर स्टोरीज़ के लिए ‘लाडली मीडिया अवार्ड’ सहित सात राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से सम्मानित शिरीष खरे की अभी तक दो पुस्तकें ‘तहक़ीकात’ और ‘उम्मीद की पाठशाला’ प्रकाशित हो चुकी हैं।
Manav Kaul Combo
1250/- ONLY
Kal Aaj Aur Kal | कल आज और कल
₹220₹140Kal Aaj Aur Kal – हमारे समय में स्थिति कुछ ऐसी बन गयी है कि लेखक को विचार की ओर मुड़ना ही पड़ता है; सिर्फ़ रचना में नहीं बल्कि सीधे। राठी के विचार का विषय-वितान बहुत फैला हुआ है। उसमें सजगता, वस्तुनिष्ठता और आवेग के साथ अनेक मुद्दों और पहलुओं पर विचार किया गया है। — अशोक वाजपेयी
Andekhe Pahad | अनदेखे पहाड़
₹300₹190Andekhe Pahad – नीरज मुसाफिर स्वभाव से घुमक्कड़ हैं। इन्हें देश के सुदूर और दुर्गम स्थानों पर यात्रा करने और अपने यात्रा-अनुभवों को लिपिबद्ध करने का शौक है। प्रस्तुत पुस्तक “अनदेखे पहाड़” नीरज मुसाफिर की 5वीं पुस्तक है।
इसमें इन्होंने उत्तराखंड के पहाड़ों में विभिन्न साहसिक यात्राओं व ट्रैकिंग के अनुभव लिखे हैं।
1. केदारनाथ (अप्रैल 2011), 2. पिंडारी ग्लेशियर (अक्टूबर 2011), 3. गौमुख-तपोवन (जून 2012), 4. रूपकुंड (अक्टूबर 2012), 5. हर की दून (अक्टूबर 2013), 6. डोडीताल (अप्रैल 2015), 7. रुद्रनाथ (सितंबर 2015), 8. नागटिब्बा (दिसंबर 2015), 9. पंचचूली बेसकैंप (जून 2017), 10. फूलों की घाटी व हेमकुंड साहिब (जुलाई 2017), 11. पँवालीकांठा बुग्याल (सितंबर 2017), 12. चौमासी के रास्ते केदारनाथ (अगस्त 2019
Pratyakshdarshi | प्रत्यक्षदर्शी
₹250₹165Pratyakshdarshi – यह उपन्यास सारी विपरीत स्थितियों के बीच अपनी जिजीविषा बनाए रखने वालों की आत्मीय कथा है। उपन्यास का समय-काल इस शहर के इतिहास का ऐसा दौर था जब यहां की मुख्य सड़कें पाताल रेल के गड्ढों और ज़मीन से खोदी गयी मिट्टी के पहाड़ों और उन कृत्रिम विपदाओं के बीच किसी तरह रास्ता बनाते आम नागरिकों से भरी थी; ‘लोडशेडिंग’ के चलते जहां रिहाइशी बस्तियों में घंटों या पहरों तक बिजली गायब रहती थी;
उमस के मारे भीड़ भरी प्राइवेट बसों, ट्रामों और नीची छत वाली मिनी बसों में लटककर सफर करना मुहाल था और हुगली नदी से सटा शहर का गोदी वाला इलाका अपनी तस्करी गतिविधियों के लिए कुख्यात हो चुका था। युवकों में बेरोज़गारी अपने चरम तक पहुंच चुकी थी।
जिस माझेरहाट (बीच के बाज़ार) का पुल अभी हाल ही में भरभराकर गिर गया, रेल पटरी के समानांतर उसके नीचे से गुज़रते हुए या उससे कुछ आगे ‘लेवेल क्रॉसिंग’ फाटक के खुलने का इंतज़ार करते हुए हमारा साबका हर रोज़ फेरीवालों के उस चमत्कृत संसार से होता था, जिसमें रुमालों, अंडरवियरों, अगरबत्तियों, फाउंटेन पेनों से लेकर ‘पुलपुल भाजा’ और बच्चों के खिलौनों तक कुछ भी खरीदा जा सकता था।
इन फेरीवालों में बहुत से पढ़े लिखे और शिक्षा प्राप्त नौजवान भी थे जो किसी ढंग की नौकरी की तलाश में धीरे-धीरे अधेड़ और फिर बूढ़े हो गए थे। ज़िंदगी की मामूली चीज़ों के लिए संघर्ष करते इन तमाम चेहरों के बीच यह शहर आज भी उतना ही खस्ताहाल, उतना ही विपन्न, मगर उतना ही जीवंत, उतना ही ज़ि़ंदा है, जितना आज से चालीस वर्ष पहले, सत्तर-अस्सी के उस संक्रमण काल में था।
samay Seemant | समय सीमांत
₹150₹100Samay Seemant इसी विषम समाज में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते पात्रों की एक आत्मीय कथा है। चालिस-बयालीस वर्षों में ये स्थितियां काफी हद तक बदल जानी चाहिए थी। लेकिन ‘समय सीमांत’ का सच आज भी उसी तरह हमारे साथ चल रहा है जहां चंद मुठ्ठी भर लोग अथाह सम्पत्ति के स्वामी बन चुके हैं और नीचे के तबके की आधी जनसंख्या पहले से कहीं अधिक विपन्न और खस्ताहाल दिखाई देने लगी हैं। जनसंख्या के विस्फोट और कमरतोड़ महंगाई ने इस समस्या को और भी गम्भीर बना दिया हैं। समाज में फैली यह विषमता आज शहरों से लेकर गांव तक हर जगह दिखाई देने लगी है।
Rukawat Ke liye Khed Hai | रुकावट के लिए खेद है
₹200₹130Rukawat Ke liye Khed Hai – ‘‘इससे भी अजीबोग़रीब क़िस्सा तेल का था…हमारे पूर्वजों को धरती में से एक ऐसा द्रव मिला था जो इसके भीतर वनस्पति के दबने से लाखों वर्षों में तैयार हुआ था… लेकिन लोगों ने इसे जला जलाकर दो सौ सालों में ही ख़त्म कर डाला था…जब तक तेल था तब तक मोटरकारें और हवाई जहाज़ बिजली की जगह इसी तेल से चलते थे…फिर जब यह ख़त्म हुआ तो इसे लेकर पता नहीं कितनी लड़ाइयाँ लड़ी गयीं…इस्राइल के इतिहासकार गोमिश ने माना है कि प्रकृति के विरुद्ध इंसान का यह जघन्य अपराध तारीख़ कभी माफ़ नहीं कर पाएगी…यह तेल लाखों औषधियों और बहुमूल्य पदार्थों को बनाने में काम आ सकता था…एक अन्य पर्यावरण विशेषज्ञ ने कहा कि यह कौम अगर वक़्त रहते कुछ ज़िम्मेदारी से पेश आयी होती तो आज इस ग्रह का तापमान कम से कम पाँच से दस डिग्री तक कम होता और हमें घर से निकलने से पहले अपनी त्वचा को बचाने के लिए इस इन्फ्रारेड प्रतिरोधक क्रीम को मलने की ज़रूरत न पड़ती…
(इसी पुस्तक की कहानी ‘ख़्वाब इक दीवाने का’ से)
Tareekh Mein Aurat | तारीख में औरत
₹400₹240Tareekh Mein Aurat – औरत ने कुदरत को सँवारकर रखने में अपनी हिस्सेदारी निभाई क्योंकि उसका जन्म ही सृजन के लिये हुआ था। उसने युद्ध नहीं रचे। उसे इसकी फ़ुरसत ही नहीं थी। तमाम तरह की विभीषिकाओं के बीच और उनके गुज़र जाने के बाद भी उसने जीवन के बीज बोए। इसके लिये उसे कभी किसी अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता नहीं रही। यह और बात है कि न जाने कब से पिलाई जाती रही त्याग, ममता और श्रद्धा की घुट्टियों ने उसके अस्तित्व को इस कदर बांधा कि वह आज तक इन्हीं छवियों में मुक्ति तलाशती आ रही है।
बहुत मुमकिन है आपने इस किताब में आने वाली औरतों में से अनेक के नाम न सुने हों। जीवन की भयानक त्रासदियों से गुज़रकर वे टूटीं, गिरीं और फिर उठकर खड़ी हुईं। ज़रूरी नहीं कि उन्हें किसी के सामने ख़ुद को किसी तरह साबित ही करना था लेकिन उन्होंने ज़िंदगी चुनी। उनमें से एक-एक हमारे ही भीतर लुक-छुपकर बैठी है, हमारे-आपके आसपास की औरत है। इस औरत ने बड़े एहतियात से तमाम शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक संघर्षों के बीच अपनी राह बनाई है। अशोक पाण्डे इसी औरत का हाथ थाम लेते हैं। —स्मिता कर्नाटक
Pani Ka Badla | पानी का बदला
₹165₹120पानी का बदला | Pani Ka Badla – बच्चों के मन को गुदगुदाते-हँसाते कुछ सीख दे जाने वाली बीस बाल कहानियों का संग्रह