अनाथ आश्रम में ज़िंदगी बिताने वाले बेरोजगार आनंद को कोई क्यों पच्चीस हजार देने को तैयार हो गया? एक ही शक्ल के दो लोग क्या जुड़वाँ थे? आनंद की कोई पहचान नहीं थी, पर क्या हुआ जब उसे किसी और की पहचान मिल गयी? उसके हमशक्ल की? क्या आनंद सचमुच अनाथ और अकेला था? कौन लोग थे जो आशा और आनंद की जान के पीछे थे? क्या मकसद था उनका? क्या आनंद उनके रहस्य तक पहुँच पाया? क्या उसकी भटकी हुई ज़िंदगी को किनारा मिला? तमाम सवालों के जवाब के लिए पढ़िए – चंदर का रोचक और रहस्य से परिपूर्ण उपन्यास भटके हुए
आनंद प्रकाश जैन का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद के कस्बा शाहपुर में 15 अगस्त, 1927 को हुआ। पहली कहानी ‘जीवन नैया’ सरसावा से प्रकाशित मासिक ‘अनेकांत’ में सन् 1941 में प्रकाशित हुई। श्री जैन ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का कुशल संपादन किया। वे सन् 1959 से 1974 तक तत्कालीन समय की प्रसिद्ध बाल पत्रिका ‘पराग’ के संपादक रहे। उन्होंने ‘चंदर’ उपनाम से अस्सी से अधिक रोमांचकारी उपन्यासों का लेखन किया।
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