बाज़ बसेरा अपने इतिहास के चलते बदनाम हो चला था। वहाँ अब तक जो भी रहा था त्रासदी उसके जीवन का हिस्सा बनी थी। वह खुद या अपने किसी नज़दीकी को गँवा बैठा था।
क्या सच में ये त्रासदियाँ दुर्भाग्यवश हुई थीं या इनके पीछे कोई गहरा राज़ था?
पाठकों द्वारा ‘अँधेरों का संगतराश’ की शृंखला को आगे बढ़ाने के अनुरोध पर जतिन जागीरदार शृंखला में अगला उपन्यास है ये ‘बाज़ बसेरा’
वर्तमान मे सिडनी निवासी संजय अग्निहोत्री, मूलतः उत्तर प्रदेश के रायबरेली शहर से हैं। पब्लिक रेलेशन्स सोसाइटी भोपाल द्वारा साहित्य सम्मान से सम्मानित व उच्च शिक्षा (एम. एससी. यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स केन्सिंग्टन) प्राप्त श्री संजय अग्निहोत्री रहस्य रोमांच और अपराध जगत पर उपन्यास लिखने में सिद्धहस्त हैं। ये छोटी सामाजिक समस्याओं पर कहानियाँ, व्यंग्य और कवितायें तथा दुरूह व पुरानी गम्भीर समस्याओं पर उपन्यास लिखते हैं। चार उपन्यास, एक कथा संग्रह, कई साझा संकलनों के अतिरिक्त, आपने इक्कीसवी सदी के तदयुगीन इक्कीस महत्वपूर्ण कवियों के संकलन में प्रतिष्ठा पाई है तथा एक अंतरराष्ट्रीय कविता संग्रह का सम्पादन भी किया है। इसके अतिरिक्त “दैनिक भास्कर”, “नूतन कहानियाँ” व अन्य स्थानीय पत्रिकाओं में इनकी कवितायें, कहानियाँ तथा व्यंग्य प्रकाशित होते रहते हैं। हिन्दी के साहित्य शिरोमणि मूर्द्धन्य उपन्यासकार पद्मश्री स्वर्गीय डॉ गिरिराज किशोर जी के शब्दों मे ‘मनोरंजक तथा चिन्तनशील लेखक’। आप उनसे www.sanjayagnihotri.com पर मिल सकते हैं।
Email: sanjaysbooks@gmail.com
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