Kitab ki sabhi kahani Jiwan jine ki kala sikhati hai.
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Prakash kumar ram
Reviewer
Rated 5 out of 5
कम शब्दों में कहूँ तो एक पठनीय, कई सारी सीख सीखा जाने वाली अविस्मरणीय पुस्तक है बात बनेचर। जिसे हर एक सुधि पाठक को अवश्य अवश्य पढ़ना ही चाहिए।
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साहित्य विमर्श
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Rated 5 out of 5
#बनकिस्सा और #बात_बनेचर बस नाम अलग हैं पर दोनों एक ही #नेचर की किताब है …. हाँ दूसरी किताब पहले से ज्यादा रोचक और आकर्षक बनी है । Sunil Kumar Sinkretik जी द्वारा लिखित इन दोनों किताबों में शामिल कहानियों में आपको जीवन का सार मिलेगा । जैसा कि मैंने पहले ही पुस्तक परिचय में लिखा था कि वन्य जीवों की भाषा में मानवीय मूल्यों को झकझोरने वाली किताब है । हर कहानी एक नयी अवधारणा, सोच और सिद्धांतो से लबरेज है .. हाँ यह सही है कि वह बिल्कुल आपके जीवन से जुड़ी हुई या आसपास के लोगों , घटनाओं, स्थिति-परिस्थितियों या चीजों से स्पष्ट संबंधित नजर आएगी । कुछ कहानियों के भाव आपको सचेत , विवेकवान और समृद्ध बनाएगा तो कुछ आपके विचारों को जोरदार टक्कर मारकर उसे सुधारने और परिशुद्ध करने की कोशिश करेगा । हमारे समाज या संसार में उत्पन्न हो रही विसंगतियों का एकमात्र कारण है लोगों का अपने सिद्धांतो से डिग कर स्वयं को या अपने स्वार्थ को सर्वोच्च स्थान पर स्थापित करना … समस्त चालाक लोग एकीकरण की जगह ध्रुवीकरण की अग्नि में सारे मापदंडो को झोंकने में लगे हैं जो एक बड़ी त्रासदी है… लेखक द्वारा इतने सहज शब्दों में समस्त मानवीय दुर्गुणों और दुराचारों को वन्यजीवों की भाषा में उल्लेखित करना एवं उसके उपचार के रास्तों का रेखांकित करना वाकई अद्भुत कल्पनाशीलता का परिचय है । मैं अब तक मिले दो लोगों एक मेरे पिता और दूसरा Triloki Nath Diwakar जी की कल्पनाशीलता से काफी प्रभावित रहा हूँ … ये दो ऐसे लोग हैं मेरे परिचय में जो कभी भी किसी भी विषय वस्तु पर एक नयी कहानी गढ़ देते हैं.. और सामने वाले को सहज ही अपने प्रभाव में कर लेते हैं । और अब ये तीसरे शख्स हैं जिनकी कल्पनाशीलता मुझे सीधे प्रभावित कर रही है । बनकिस्सा से चला कहानियों का सफर बात बनेचर के बाद भी जारी रहेगा ऐसा मुझे अंदाजा ही नहीं पूरा यकीन है क्योंकि लेखक कहानियों का राजा मालूम जान पड़ता है । आज के समय में जब लोग खुद ही खुद में या कहूँ तो सोशल मीडिया के आभासी दुनियां में इस कदर मगन हैं कि उनके आसपास क्या चल रहा है या क्या कुछ है जो वे नजरअंदाज कर रहे हैं इसका पता ही नहीं चल रहा है उस दौर में इन्होने एक कथावाचक और दो हमेशा उत्सुक होकर कहानी सुनने वाले श्रोताओं के माध्यम से जिन – जिन बातों को उकेरा है … वह सराहनीय तो है साथ ही अतुलनीय और अकल्पनीय भी है । हम जब छोटे थे तो कभी दादा तो कभी दादी के सीने लग काफी कहानियां सुना करते थे जिसका हमारे मानस पटल पर गहरा प्रभाव पड़ा है .. अपने मूल्यों और सिद्धांतो की आधारशिला कहीं ना कहीं वहीं से स्थापित हुई है । उनलोगों के साथ ही अपने माता-पिता के व्यक्तित्व और सिद्धातों से विचारों और व्यवहारों के साथ ही सिद्धातों में संबलता मिली है । ज्ञान हमेशा ऊँचे मापदंडो और सच्चे रास्तों की ओर निर्देशित करता है .. मुश्किलें और परेशानियां सिद्धातों से डिगाने की कोशिश भले करते हैं पर वह जो उच्च सिद्धातों के द्वारा पोषित संस्कार अंदर स्थापित है वह बिखरने से, सच कहूँ तो मिटने से बचा लेता है । ये दोनों पुस्तकें मानवों के उच्च आदर्शों को स्थापित और पोषित करने वाले हैं । साथ ही कुछ वैसे भी वन्यजीवों के नामों, गुणों और व्यवहारों को आपको जानने को मिलेगा जो आपको रोमांचित करेगा , हाँ हिन्दी के कुछ वैसे शब्द जो आम बोलचाल में शामिल नहीं है वह आपको नया और थोड़ा परेशान करने वाला लगेगा …. परंतु दूसरी किताब में लेखक ने इस बात का ध्यान रखा है और ज्यादातर कठिन शब्दों के अर्थ किताब के आखिर में लिख दिया है । पहली किताब पढ़ने के बाद समय नहीं मिल पाया था कि अपने अनुभव आपसबों से साझा कर सकूं इसलिए सामूहिक रूप से आज लिख दिया और यह काफी है क्योंकि दोनों किताबों का थीम और उद्देश्य बिल्कुल समान है ।
आज के लिए बस इतना ही ।
आपके स्नेह की अपेक्षा में आपका मित्र
जय कृष्ण कुमार
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Baat Banechar
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“उस जीवन पर क्या गर्व करना जिसमें गिनाने के लिए वर्षों की संख्या के सिवा कुछ न हो। बदलाव में जिंदगी है, ठहराव में नहीं।”
– बात बनेचर
बात बनेचर वो किताब है कि जब इसका पहला पन्ना खोलो तो ऐसा लगता है मानों जंगल के प्रवेश द्वार पर खड़े हो और पंछियों की, पशुओं की आवाज़ें अंदर बुला रही हों। एक बार इसकी कोई भी कहानी पढ़ने की देर नहीं है कि ख़ुद कहाँ बैठे हैं, कितनी देर से पढ़ रहे हैं, ये भी याद नहीं रहता।
सुनील कुमार ‘सिंक्रेटिक’ मूल रूप से भोजपुर, बिहार के रहनेवाले। वर्तमान में राज्य सरकार में पदाधिकारी। बचपन से जीव-जंतुओं, वन्य प्राणियों में रुचि रही। वर्तमान हिन्दी में अपनी विधा के एक मात्र लेखक हैं। सब किस्सा लिखते हैं, ये बन किस्सा। इनकी प्रसिद्धि इंसानी चरित्र के मुताबिक जानवरों को ढूंढकर ऐसी कहानी गढ़ने की है कि जंगल का सामान्य सा किस्सा, कब मनुष्य का जीवन-किस्सा बन जाता है, पता ही नहीं चलता। विजुअल मोड इनकी लेखनी की विशेष शैली है। पढ़ने के साथ कहानी आँखों के सामने घूमने लगती है। इनकी पहली किताब ‘बनकिस्सा’ पाठकों के बीच ‘मॉडर्न पंचतंत्र’ के रूप में विख्यात है। ‘बात बनेचर’ उसी परंपरा की अगली किताब है
Weight
190 g
Dimensions
20.5 × 12.7 × 1.3 cm
Number of Pages
220
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I want to read this book.
बात बनेचर यकीनन एक उम्दा कृति है।
Kitab ki sabhi kahani Jiwan jine ki kala sikhati hai.
कम शब्दों में कहूँ तो एक पठनीय, कई सारी सीख सीखा जाने वाली अविस्मरणीय पुस्तक है बात बनेचर। जिसे हर एक सुधि पाठक को अवश्य अवश्य पढ़ना ही चाहिए।
#बनकिस्सा और #बात_बनेचर बस नाम अलग हैं पर दोनों एक ही #नेचर की किताब है …. हाँ दूसरी किताब पहले से ज्यादा रोचक और आकर्षक बनी है । Sunil Kumar Sinkretik जी द्वारा लिखित इन दोनों किताबों में शामिल कहानियों में आपको जीवन का सार मिलेगा । जैसा कि मैंने पहले ही पुस्तक परिचय में लिखा था कि वन्य जीवों की भाषा में मानवीय मूल्यों को झकझोरने वाली किताब है । हर कहानी एक नयी अवधारणा, सोच और सिद्धांतो से लबरेज है .. हाँ यह सही है कि वह बिल्कुल आपके जीवन से जुड़ी हुई या आसपास के लोगों , घटनाओं, स्थिति-परिस्थितियों या चीजों से स्पष्ट संबंधित नजर आएगी । कुछ कहानियों के भाव आपको सचेत , विवेकवान और समृद्ध बनाएगा तो कुछ आपके विचारों को जोरदार टक्कर मारकर उसे सुधारने और परिशुद्ध करने की कोशिश करेगा । हमारे समाज या संसार में उत्पन्न हो रही विसंगतियों का एकमात्र कारण है लोगों का अपने सिद्धांतो से डिग कर स्वयं को या अपने स्वार्थ को सर्वोच्च स्थान पर स्थापित करना … समस्त चालाक लोग एकीकरण की जगह ध्रुवीकरण की अग्नि में सारे मापदंडो को झोंकने में लगे हैं जो एक बड़ी त्रासदी है… लेखक द्वारा इतने सहज शब्दों में समस्त मानवीय दुर्गुणों और दुराचारों को वन्यजीवों की भाषा में उल्लेखित करना एवं उसके उपचार के रास्तों का रेखांकित करना वाकई अद्भुत कल्पनाशीलता का परिचय है । मैं अब तक मिले दो लोगों एक मेरे पिता और दूसरा Triloki Nath Diwakar जी की कल्पनाशीलता से काफी प्रभावित रहा हूँ … ये दो ऐसे लोग हैं मेरे परिचय में जो कभी भी किसी भी विषय वस्तु पर एक नयी कहानी गढ़ देते हैं.. और सामने वाले को सहज ही अपने प्रभाव में कर लेते हैं । और अब ये तीसरे शख्स हैं जिनकी कल्पनाशीलता मुझे सीधे प्रभावित कर रही है । बनकिस्सा से चला कहानियों का सफर बात बनेचर के बाद भी जारी रहेगा ऐसा मुझे अंदाजा ही नहीं पूरा यकीन है क्योंकि लेखक कहानियों का राजा मालूम जान पड़ता है । आज के समय में जब लोग खुद ही खुद में या कहूँ तो सोशल मीडिया के आभासी दुनियां में इस कदर मगन हैं कि उनके आसपास क्या चल रहा है या क्या कुछ है जो वे नजरअंदाज कर रहे हैं इसका पता ही नहीं चल रहा है उस दौर में इन्होने एक कथावाचक और दो हमेशा उत्सुक होकर कहानी सुनने वाले श्रोताओं के माध्यम से जिन – जिन बातों को उकेरा है … वह सराहनीय तो है साथ ही अतुलनीय और अकल्पनीय भी है । हम जब छोटे थे तो कभी दादा तो कभी दादी के सीने लग काफी कहानियां सुना करते थे जिसका हमारे मानस पटल पर गहरा प्रभाव पड़ा है .. अपने मूल्यों और सिद्धांतो की आधारशिला कहीं ना कहीं वहीं से स्थापित हुई है । उनलोगों के साथ ही अपने माता-पिता के व्यक्तित्व और सिद्धातों से विचारों और व्यवहारों के साथ ही सिद्धातों में संबलता मिली है । ज्ञान हमेशा ऊँचे मापदंडो और सच्चे रास्तों की ओर निर्देशित करता है .. मुश्किलें और परेशानियां सिद्धातों से डिगाने की कोशिश भले करते हैं पर वह जो उच्च सिद्धातों के द्वारा पोषित संस्कार अंदर स्थापित है वह बिखरने से, सच कहूँ तो मिटने से बचा लेता है । ये दोनों पुस्तकें मानवों के उच्च आदर्शों को स्थापित और पोषित करने वाले हैं । साथ ही कुछ वैसे भी वन्यजीवों के नामों, गुणों और व्यवहारों को आपको जानने को मिलेगा जो आपको रोमांचित करेगा , हाँ हिन्दी के कुछ वैसे शब्द जो आम बोलचाल में शामिल नहीं है वह आपको नया और थोड़ा परेशान करने वाला लगेगा …. परंतु दूसरी किताब में लेखक ने इस बात का ध्यान रखा है और ज्यादातर कठिन शब्दों के अर्थ किताब के आखिर में लिख दिया है । पहली किताब पढ़ने के बाद समय नहीं मिल पाया था कि अपने अनुभव आपसबों से साझा कर सकूं इसलिए सामूहिक रूप से आज लिख दिया और यह काफी है क्योंकि दोनों किताबों का थीम और उद्देश्य बिल्कुल समान है ।
आज के लिए बस इतना ही ।
आपके स्नेह की अपेक्षा में आपका मित्र
जय कृष्ण कुमार