लोग कहते थे कि उस कॉटेज में एक लड़की का भूत रहता था जिसने वहाँ आत्महत्या कर ली थी। अंग्रेजों के समय से ही उस कॉटेज की कुख्याति इसी कारण थी। अपने अतीत से पीछा छुड़ाने के लिए भागा अमित जब उस कॉटेज में रहने आया तो उसकी मुलाकात एक परी चेहरा युवती से हुई। मुसीबत की मारी जान कर अमित उसे कॉटेज में ले आया। उसे नहीं पता था कि वह किस जोखिम में अपनी जान डाल रहा है। क्या हुआ जब अमित का वह अतीत सामने आ गया, जिससे पीछा छुड़ाने के लिए वह भाग रहा था। क्या किस्सा था कॉटेज के भूत का? क्या अमित स्वयं को बचा पाया या भूतों ने उसे भी भूत बना दिया। ड्रग, यौन शोषण और साजिश के ताने-बाने से गुँथी एक रोमांचक कहानी – अपने अपने सपने
आनंद प्रकाश जैन का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद के कस्बा शाहपुर में 15 अगस्त, 1927 को हुआ। पहली कहानी ‘जीवन नैया’ सरसावा से प्रकाशित मासिक ‘अनेकांत’ में सन् 1941 में प्रकाशित हुई। श्री जैन ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का कुशल संपादन किया। वे सन् 1959 से 1974 तक तत्कालीन समय की प्रसिद्ध बाल पत्रिका ‘पराग’ के संपादक रहे। उन्होंने ‘चंदर’ उपनाम से अस्सी से अधिक रोमांचकारी उपन्यासों का लेखन किया।
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